चंडीगढ़-पंजाब में आप-कांग्रेस की धाक
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चंडीगढ़-पंजाब में आप-कांग्रेस की धाक

‘बेवफा तेरे आने का हर तरफ
इतना शोर क्यों है
तूने एक चेहरे पर लगा रखे हैं
हजार चेहरे, पर तू मेरी ओर क्यों है’
जम्हूरियत के सबसे बड़े महापर्व का समापन हो गया। इस 1 जून को पंजाब की 13 और चंडीगढ़ केंद्र शासित सीट पर मतदान संपन्न हुआ। मजे की बात तो यह कि पंजाब में भाजपा ने 13 सीटों पर जो अपने प्रत्याशी उतारे इनमें से 11 अन्य पार्टियों से आयातित थे। अकाली पूरी तरह इन चुनावों में दरकिनार होते दिखे सो, उन्होंने ’ऑपरेशन ब्लू स्टार’ की बरसी के चलते पुराना राग अलापना शुरू कर दिया। सो, इस मौके को भुनाने के लिए अकालियों ने पंजाब के गुरुद्वारों के बाहर पोस्टर लगा दिए, कांग्रेसी दिग्गज मनीष तिवारी कमजोर पिच पर खेलते नज़र आए, पर 20 मई के बाद धीरे-धीरे उन्होंने अपने पक्ष में माहौल बना लिया। उन्होंने चंडीगढ़ के ‘गवर्नेस मॉडल’ को परिभाषित करने के लिए अपना एक विजन डॉक्यूमेंट ‘सिटी स्टेट मॉडल’ भी रिलीज किया जो खासा चर्चा में रहा।

आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल भी उनके पक्ष में चुनावी अलख जगाने के लिए चंडीगढ़ पधारे। प्रियंका गांधी जब राजीव शुक्ला के साथ हेलिकॉप्टर से चंडीगढ़ उतरीं तो हेलीपैड पर प्रियंका को जैसे ही मनीष ने रिसीव करते हुए फूलों का गुलदस्ता भेंट किया तो प्रियंका ने एक झटके में मनीष से पूछ लिया, ‘पवन बंसल जी नहीं आए?’ तो मनीष ने किंचित भावुक होते हुए कहा -मैंने उनसे रिक्वेस्ट की थी, उनसे फोन पर भी रोजाना बात हो जाती है, पर चुनाव में वे मेरे साथ नहीं आए। इस पर प्रियंका ने अपने सचिव से बंसल को फोन लगाने को कहा, जैसे ही बंसल लाइन पर आए प्रियंका ने छूटते ही उनसे कहा-मैं एक जनसभा को संबोधित करने जा रही हूं, आप भी मंच पर उपस्थित रहिएगा। यह सुनने भर कि देर थी कि बंसल भागे-भागे सभा स्थल पर जा पहुंचे और मंच पर अवतरित हो गए। इस घटना के बाद ही बंसल चंडीगढ़ के अलावा हिमाचल प्रदेश में भी सक्रिय दिखे।

जयंत की असली चिंता
राष्ट्रीय लोकदल के मुखिया जयंत चौधरी नए-नए भगवा ताने-बाने में ढले हैं, पर वे भी इन दिनों खुद को ठगा-ठगा महसूस कर रहे हैं। पश्चिमी यूपी में जब तक चुनाव चल रहे थे तो जयंत को भाजपा वाले पहचान भी रहे थे, कुछ भाव भी दे रहे थे, खास कर जाट बहुल इलाकों में लेकिन लगता है कि भाजपा में जयंत का अब कोई सुधलेवा बचा नहीं है। मिसाल के तौर पर इसी 29 मई को चौधरी चरण सिंह की पुण्य तिथि थी। इस बड़े किसान नेता को पीएम मोदी ने ताजा-ताजा सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से नवाज़ा है। सो, जयंत को पूरी उम्मीद थी कि दिल्ली के किसान घाट पर उनके दादा को श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए भाजपाइयों की भारी भीड़ जुटेगी, पर उन्हें निराशा ही हाथ लगी क्योंकि किसी छुटभैय्ये भाजपा नेता ने भी वहां पहुंचने की जहमत नहीं उठाई। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ जरूर आए, पर वो भी सिर्फ इस वजह से कि उन्हें एक बड़े जाट नेता के पक्ष में कदमताल करनी थी।

राहुल का दो टूक फैसला
इस बार बदले-बदले सरकार नजर आते हैं। राहुल गांधी अपने एक नए अवतार में हैं, वे न सिर्फ राजनीतिक रूप से परिपक्व हुए हैं बल्कि त्वरित निर्णय लेने में भी दिलचस्पी दिखा रहे हैं। राहुल ने अपनी कोर टीम को ऐसे पार्टी नेताओं की ​िशनाख्त का काम सौंपा था जो नेतागण पार्टी के अंदर रह कर पार्टी के खिलाफ काम कर रहे है, जो काम नहीं कर रहे थे उनके लिए राहुल का मंत्र था उन्हें बाहर का रास्ता दिखाओ। दिल्ली कांग्रेस के मामले में भी ऐसा ही हुआ था, जब राहुल को खबर मिली कि अरविंदर सिंह लवली की अगुवाई में शीला दीक्षित गुट पार्टी के खिलाफ काम कर रहा है तो उन्होंने अपने बड़े नेताओं से कहा कि ‘फौरन प्रेस कांफ्रेंस कर इन्हें बाहर का दरवाजा दिखाएं।’ लवली तो भाजपा में रम गए? पर कन्हैया कुमार को टिकट मिलने से नाराज संदीप दीक्षित ने भंगिमाएं बदल लीं और वे फौरन बेमन से ही सही पार्टी के काम में जुट गए।

मंडी और करनाल का भगवा ऐलान
हिमाचल की मंडी और हरियाणा की करनाल दो हाई प्रोफाइल सीटों को इस दफे भाजपा ने अपनी नाक का सवाल बना लिया था। मंडी लोकसभा सीट से बॉलीवुड अभिनेत्री कंगना रनौत और करनाल से हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर चुनावी मैदान में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। पार्टी के तमाम बड़े नेताओं ने इन दोनों सीटों पर अपनी पूरी ताकत झोंक दी। बात कंगना की करें तो उनके लिए स्वयं पीएम मोदी ने रैली की। पार्टी के तमाम बड़े दिग्गज मसलन योगी आदित्यनाथ, अमित शाह, राजनाथ सिंह और नितिन गडकरी ने उनके पक्ष में चुनावी सभाएं कीं। कमोबेश यही हाल करनाल सीट का रहा, जहां मोदी दुलारे मनोहर लाल खट्टर पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं और उनकी कांग्रेस के युवा प्रत्याशी दिव्यांशु बुद्धिराजा से टक्कर है। करनाल सीट भाजपा के नजरिए से इसीलिए भी महत्वपूर्ण है कि यहीं से उनके नए नवेले मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी भी विधानसभा का उपचुनाव लड़ रहे हैं। उनके लिए खट्टर ने सीट छोड़ी थी ताकि सैनी उपचुनाव के मार्फत विधानसभा में पहुंच सकें।

क्या यूपी बदल रहा है?
भाजपा के लिए इस दफे यूपी का चुनावी मैदान किंचित इतना आसान नहीं रहा। 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने यहां की 80 में से 62 सीटें जीत ली थीं और इस दफे भाजपा न सिर्फ अपना रिकार्ड बरकरार रखना चाहती थी बल्कि उसे और बेहतर भी बनाना चाहती थी। राजनैतिक पर्यवेक्षक बताते हैं कि इस दफे यूपी की चुनावी फिज़ा किंचित बदली-बदली सी थीं। अगर भाजपा का 2019 का आंकड़ा देखें तो इस चरण की महाराजगंज, गोरखपुर, कशीनगर, बांसगांव, देवरिया, सलेमपुर, बलिया, चंदौली और वाराणसी में भाजपा ने अपना भगवा झंडा लहराया था वहीं मिर्जापुर और राबर्टसगंज की सीटें भाजपा के सहयोगी अपना दल के हिस्से आई थी। साफ तौर पर दिख रहा है कि देवरिया, बलिया और चंदौली जैसी सीटें फंसी हुई हैं और भाजपा ने इन चुनावों में जो ‘नेरेटिव’ तैयार किया था यहां की जनता उसे हाथों-हाथ नहीं ले पायी।

जनता के लिए फ्री राशन और राम मंदिर यहां कोई बड़ा मुद्दा नहीं रह गया बल्कि बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी, महंगी बिजली, महंगा गैस सिलेंडर, पुलिस, सेना, रेलवे और शिक्षकों की भर्ती न होना यहां एक बड़ा मुद्दा रहा है। यूपी के अन्य चरणों के मतदान में भी कानपुर, कन्नौज, धौरहरा, शाहजहांपुर, अमेठी और रायबरेली जैसी सीटों पर जनता द्वारा परिभाषित यही मुद्दे मुखर नजर आ रहे थे जो इंडिया गठबंधन के लिए अच्छी ख़बर हो सकती है। और अंत में2024 का आम चुनाव देश का अब तक का सबसे महंगा चुनाव साबित हुआ है। ‘सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज’ के आंकड़ों के मुताबिक इस दफे के चुनाव के आखिरी चरण के मतदान तक 1.35 लाख करोड़ खर्च हो चुके हैं। एक वोट की कीमत तकरीबन 1400 रुपए आंकी गई है। वहीं 2019 में 55-60 हजार करोड़ चुनावी खर्च का अनुमान किया गया था। देखा जाए तो चुनावी खर्च के मामले में भारत ने अमेरिका जैसे विकसित राष्ट्र को भी पीछे छोड़ दिया है। सनद रहे कि 2020 के अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव में 1.20 लाख करोड़ रुपए खर्च हुए थे।

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