16 से 18 साल की उम्र के लड़की के साथ बने शारीरिक संबंध को बलात्कार माने जाने के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। याचिकाकर्ता ने अपील करते हुए कहा कि ऐसे मामलों में रेप का केस तभी चलना चाहिए जब संबंध लड़की की सहमति के बिना बनाया गया हो या उसकी सहमति डरा-धमका कर या धोखे से ली गई हो। याचिका में कहा गया है कि अगर 16 साल से अधिक की लड़की यौन संबंध की सहमति देने के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से सक्षम है, तो उसकी रजामंदी से संबंध बनाने वाले पर रेप का मुकदमा नहीं चलना चाहिए।
याचिकाकर्ता हर्ष विभोर सिंघल ने कोर्ट को ये बताया
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े के मुताबिक 19 से 21 साल की उम्र के लगभग 36 हज़ार लड़के रेप के ऐसे मुकदमों के चलते जेल में बंद हैं। याचिकाकर्ता हर्ष विभोर सिंघल ने कोर्ट को बताया है कि कानून 18 साल से कम उम्र की लड़की की सहमति से बने संबंध को भी रेप मानता है। 18 से कम की लड़की के साथ संबंध को अनिवार्य रूप से रेप मानने का खामियाजा उठाने वालों की संख्या लाखों में है।
ज्युवेनाइल जस्टिस एक्ट में हुए बदलाव का भी हवाला दिया गया
याचिकाकर्ता ने ज्युवेनाइल जस्टिस एक्ट में हुए बदलाव का भी हवाला दिया है। उन्होंने कहा है कि गंभीर अपराध के मामलों में 16 साल से अधिक के आरोपी की मानसिक और शारीरिक स्थिति की जांच की जाती है। फिर यह तय किया जाता है कि उसे वयस्क मानकर मुकदमा चलाया जाए या नही। ठीक उसी तरह 16 से 18 साल की लड़की के साथ बने संबंध के मामले में भी इस तरह की जांच होनी चाहिए। यह देखा जाना चाहिए कि क्या लड़की सहमति देने लायक है। अगर ऐसा है तो लड़की को वयस्क की तरह देखते हुए उसकी सहमति से बने रिश्ते को रेप न माना जाए।
कोर्ट ने राष्ट्रीय महिला आयोग से भी जवाब मांगा
कोर्ट ने थोड़ी देर दलीलें सुनने के बाद मामले में केंद्र सरकार के गृह, कानून, स्वास्थ्य और महिला कल्याण मंत्रालय को नोटिस जारी कर दिया। इसके अलावा कोर्ट ने राष्ट्रीय महिला आयोग से भी जवाब मांगा है। 6 अक्टूबर को मामले की अगली सुनवाई होगी। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस जे बी पारडीवाला और मनोज मिश्रा की बेंच के सामने याचिकाकर्ता हर्ष विभोर सिंघल ने खुद दलीलें रखीं।