16 जनवरी से सात जून के बीच मृत्यु के 488 मामलों को टीकाकरण से नहीं जोड़ा जा सकता - केंद्र सरकार - Punjab Kesari
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16 जनवरी से सात जून के बीच मृत्यु के 488 मामलों को टीकाकरण से नहीं जोड़ा जा सकता – केंद्र सरकार

केंद्र ने मंगलवार को कहा कि 16 जनवरी से सात जून के बीच मृत्यु के 488 मामलों को

कोविड-19 रोधी टीकों के दुष्प्रभावों का अध्ययन कर रही सरकार की एक समिति ने टीकाकरण के बाद ऐनफलैक्सिस (जानलेवा एलर्जी) की वजह से मृत्यु के पहले मामले की पुष्टि की है, वहीं केंद्र ने मंगलवार को कहा कि 16 जनवरी से सात जून के बीच मृत्यु के 488 मामलों को टीकाकरण से नहीं जोड़ा जा सकता और विस्तृत विश्लेषण करना होगा।
कोविड-19 का टीका लगाये जाने के बाद प्रतिकूल प्रभावों (एईएफआई) से मौत के 31 गंभीर मामलों का समिति ने मूल्यांकन किया। राष्ट्रीय एईएफआई समिति की रिपोर्ट के अनुसार 68 साल के एक व्यक्ति को 8 मार्च, 2021 को टीका लगाया गया था, जिसके बाद गंभीर एलर्जी होने से उनकी मृत्यु हो गयी। उन्हें कोविशील्ड का टीका लगाया गया था।
समिति के अध्यक्ष डॉ एन के अरोड़ा ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘यह कोविड-19 से जुड़ा ऐनफलैक्सिस से मृत्यु का पहला मामला है। इससे यह बात और पुख्ता होती है कि टीके की खुराक लगवाने के बाद टीकाकरण केंद्र पर 30 मिनट तक इंतजार करना जरूरी है। अधिकतर ऐनफलैक्टिक प्रतिक्रियाएं इसी अवधि में होती हैं और तत्काल उपचार से रोगी को मृत्यु से बचाया जा सकता है।’’
समिति ने पांच ऐसे मामलों का अध्ययन किया, जो पांच फरवरी को सामने आए थे, आठ मामले नौ मार्च को और 18 मामले 31 मार्च को सामने आए।
रिपोर्ट के अनुसार अप्रैल के पहले सप्ताह के आंकड़ों के अनुसार, टीके की प्रति दस लाख खुराकों में मृत्यु के मामले 2.7 हैं और प्रति दस लाख खुराकों में अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या 4.8 है।
स्वास्थ्य मंत्रालय ने मंगलवार को उन खबरों को ‘अधूरी’ और ‘सीमित समझ वाली’ बताया जिनमें दावा किया गया है कि 16 जनवरी से सात जून के बीच टीकाकरण के बाद मृत्यु के 488 मामले कोविड के बाद की जटिलताओं से जुड़े थे।
मंत्रालय ने कहा कि देश में उक्त अवधि में 23.5 करोड़ लोगों को कोविड टीका लग चुका है और कोविड-19 टीकाकरण से देश में मृत्यु के मामलों की संख्या टीका लगवा चुके लोगों की संख्या का महज 0.0002 प्रतिशत है और यह किसी आबादी में अपेक्षित दर है।
मंत्रालय ने कहा कि यह ध्यान रखना भी महत्वपूर्ण है कि कोविड-19 से संक्रमित पाये जाने वाले लोगों में मृत्यु दर एक प्रतिशत से अधिक है और टीकाकरण इन मृत्यु के मामलों को भी रोक सकता है। उसने कहा, ‘‘इसलिए कोविड-19 से मृत्यु के ज्ञात जोखिम की तुलना में टीकाकरण से मृत्यु का जोखिम नगण्य है।’’
उसने मीडिया में आईं कुछ खबरों का हवाला दिया जिनमें टीकाकरण के बाद प्रतिकूल प्रभावों (एईएफआई) के मामले बढ़ने से टीका लगाने के बाद रोगियों की मृत्यु की बात कही गयी है।
एईएफआई समिति ने कहा कि केवल मृत्यु होना या रोगी का अस्पताल में भर्ती होना इस बात को साबित नहीं कर देता कि ये घटनाएं टीका लगवाने के कारण हुईं।
समिति के अनुसार कुल 31 मामलों में से 18 मामलों का टीकाकरण से कोई लेना-देना नहीं पाया गया, 7 मामलों को अनिश्चित की श्रेणी में रखा गया, तीन मामले टीके के उत्पाद से संबंधित थे, मृत्यु का एक मामला चिंता और बेचैनी से जुड़ा पाया गया और दो मामलों को किसी श्रेणी में नहीं रखा गया।
इसमें कहा गया है कि टीके के उत्पाद से संबंधित प्रतिक्रिया से आशय उन अपेक्षित प्रतिक्रियाओं से हैं जो मौजूदा वैज्ञानिक साक्ष्य के आधार पर टीकाकरण के कारण हो सकती हैं। इनमें एलर्जी और ऐनफलैक्सिस आदि आती हैं।
समिति ने कहा कि टीकाकरण के फायदे इससे नुकसान के मामूली जोखिम की तुलना में बहुत ज्यादा हैं। पूरी सावधानी बरतते हुए नुकसान के सभी संकेतों पर लगातार नजर रखी जा रही है और समय-समय पर उनकी समीक्षा की जा रही है।

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