प्राकृतिक आपदाओं को प्रायः देवों का प्रकोप माना जाता है। पुरातन संस्कृति में प्रकृति के हर प्रतीक की ईश्वरीय तुलना हुई है। हर नदी देवी है तो पेड़-पौधों में दिव्य ऊर्जा मानी गई है। रास्ते भी पूजे जाते हैं और परम्पराएं भी पूजी जाती हैं लेकिन क्या प्राकृतिक प्रकोप की भविष्यवाणी सुनने के लिए मानव तैयार है। जब मानव भविष्यवाणी सुनने को तैयार नहीं होता तो देव हमें डराते हैं। इस वर्ष हिमाचल और उत्तराखंड में पहाड़ दरकने की घटनाओं ने बहुत बर्बादी की है। हिमाचल में बर्बाद हुए क्षेत्रों में पुनर्निर्माण को बरसों लग जाएंगे। पहाड़ ही नहीं गिरे बल्कि बहुत सारे सवालों के पहाड़ भी दरके हैं। अब सिक्किम में केदारनाथ जैसी आपदा ने तबाही मचा दी है। इस आपदा में सेना के 23 जवानों समेत 102 लोग लापता है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बादल फटने की घटनाओं को हृदय विदारक बताते हुए सेना के जवानों की सलामती के लिए प्रार्थना की है। लापता लोगों को बचाने का अभियान जारी है। मृतकों की संख्या भी बढ़ रही है।
वैसे तो पहाड़ पर जीवन ही एक आपदा के समान होता है लेकिन सामान्य समय में पहाड़ पर रहने वाले लोग अपने जीवन का प्रबंधन करना भी बखूबी जानते हैं लेकिन अगर जल सैलाब आ जाए तो उसके सामने किसी का वश नहीं चलता। सिक्किम में आई असमानी आपदा का विश्लेषण किया जाए तो कारण स्पष्ट नजर आते हैं। बताया जा रहा है कि रात करीब डेढ़ बजे ल्होनक झील के ऊपर बादल फटा था। इसके बाद लाचेन घाटी में तीस्ता नदी में बाढ़ आ गई। नदी से लगे इलाके में ही सेना का कैंप है, जो बाढ़ की चपेट में आने के बाद बह गया। इस कैंप में तैनात रहे सेना के 23 जवान लापता हैं। 7 लोगों की अब तक मौत की खबर आई है। ल्होनक झील के ऊपर बादल फटने से चुंगथांग बांध से पानी छोड़ना पड़ा, जिसके बाद निचले इलाके डूबने लगे और तबाही फैलती गई। यहां सिंगताम के पास बारदांग में खड़े सेना के वाहन भी बह गए। इसरो ने झील की सैटेलाइट इमेज जारी की हैं, जिनमें बादल फटने से पहले, बीच में और झील का सारा पानी बह जाने के बाद की स्थिति दिख रही है। झील से जब पानी नीचे आया तब वो अपने साथ ढेर सारा मलबा और पत्थर भी लेकर आया। हरे रंग में दिखने वाली तीस्ता नदी पीले और मटमैले रंग में बहने लगी।
वैज्ञानिक पहले ही ऐसी आपदा आने की भविष्यवाणी करते रहे हैं। दक्षिणी ल्होनक झील सिक्किम के हिमालय क्षेत्र के उन 14 ग्लेशियर झीलों में से एक है जिनके फटने का खतरा पहले से ही था। इस झील को फ्लैश फ्लड के प्रति बेहद संवेदनशील बताया गया था। इस झील का क्षेत्रफल लगातार बढ़ता जा रहा था क्योंकि ग्लोबल वार्मिंग की वजह सेल्होनक ग्लेशियर लगातार पिघलता जा रहा है। पिघलते ग्लेशियर का पानी इस झील में जमा हो रहा था लेकिन इस झील की दीवारें इतने पानी का दबाव सहन नहीं कर पा रही थी। यही कारण था कि जब झील के ऊपर बादल फटा तो पानी के दबाव से इसकी दीवारें टूट गईं और तीस्ता नदी में बाढ़ आ गई। सिक्किम में 320 हिमनद झीलें हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह झीलें केवल ढीली मिट्टी और मोराइन नामक मलबे से बनी हैं। अगर यह टूटीं तो नीचे की तरफ तबाही मचा सकती हैं।
पाकिस्तान, चीन और तिब्बत क्षेत्र के पहाड़ों में ग्लोबल वार्मिंग से प्रभावित ग्लेशियरों, हिमनद झीलों और संभावित जीएलओएफ की पहचान की सूची में कहा गया है कि तीस्ता नदी बेसिन में लगभग 576 वर्ग किमी के ग्लेशियर क्षेत्र के साथ 285 ग्लेशियर हैं। यहां 266 हिमनद झीलें हैं और उनमें से 14 खतरनाक हैं। ग्लेशियरों के पिघलने की दर में वृद्धि के कारण क्षेत्र में झीलें बढ़ रही हैं और उनकी संग्रहित जल क्षमता भी बढ़ रही है। सिक्किम भारतीय भूकंपीय चार्ट के जोन-4 में आता है और भूकंप के झटकों से जीएलओएफ ट्रिगर हो सकता है।
तापमान बढ़ने से भारी मात्रा में नमी वाले बादल एक जगह इकट्ठा होने पर पानी की बूंदें आपस में मिल जाती हैं। इससे बूंदों का भार इतना ज्यादा हो जाता है कि बादल का घनत्व बढ़ जाता है। इससे एक सीमित दायरे में अचानक तेज बारिश होने लगती है। इसे ही बादल फटना कहा जाता है। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में क्षेत्रीय जलचक्र में बदलाव भी बादल फटने का बड़ा कारण है। इसीलिए यहां बादल पानी के रूप में परिवर्तित होकर तेजी से बरसना शुरू कर देते हैं। दूसरे शब्दों में समझें तो मानसून की गर्म हवाओं के ठंडी हवाओं के संपर्क में आने पर बड़े आकार के बादल बनते हैं। हिमाचल और उत्तराखंड में ऐसा पर्वतीय कारकों के कारण भी होता है। इसलिए हिमालयी क्षेत्रों में बादल फटने की घटनाएं ज्यादा हो रही हैं।
मंजर बहुत भयानक है। अब तक 4000 से ज्यादा लोगों को सुरक्षत निकाला गया है। भारी बारिश के चलते रेस्क्यू आपरेशन में दिक्कत आ रही है। प्राकृति ने सिक्किम को कभी न भूलने वाला दर्द दिया है। प्रकृति का संतुलन बनाए रखने के लिए जल, जंगल, वन्य जीव और वनस्पति, इन सभी का संरक्षण जरूरी है लेकिन आप खुद सोचिए, क्या हम ऐसा कर रहे हैं। पूरी दुनिया में जलवायु परिवर्तन की वजह से कही बाढ़ है तो कहीं सूखा है। आपने भी इस पर ध्यान दिया होगा कि अब प्राकृतिक आपदा ज्यादा आती हैं। भारत में भी इस वर्ष कुदरत ने कई बार कहर ढाया है। 22 जुलाई को शिमला में बादल फटा था, जिसकी वजह से चंबा-पठानकोट नेशनल हाइवे पर भूसख्लन हुआ था। इसी वर्ष 25 जुलाई को शिमला के रामपुर में बादल फटने से कंदार गांव में मकान और मवेशी बह गए। इसी वर्ष 24 अगस्त को मंडी में बादल फटने से 51 लोग फंस गए थे। मंडी में भी भीषण तबाही हुई थी।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com