ना मैं मुसलमान हूं ना हिन्दू , ना मैं समाज के चार वर्णो को मानती हूं। (पीरो प्रेमण )
भूमंडलीकरण के लिए अंग्रेजी में ग्लोबलाइजेशन शब्द दिया है, जिसे विदेशी विद्वान जिनमें गिंडीस,शाल्टे, कास्टेल,रोजनो, लिंकलेटर तथा मैकमिलन आदि भूमंडलीकरण को सबसे बडी चालक शक्ति मानते है- आज के समय की सबसे बडी चालक शक्ति भूमंडलीकरण है, यह तमाम आधुनिक समाजों को गति देता है,और तमाम नई विश्व व्यवस्था का निर्माण करता है। “वसुधैव कुटुम्बकम तथा बहुजन हिताय बहुजन सुखाय’ की भावना के स्थान पर पूँजीवाद, बाजारवाद उपभोक्ता संस्कृति तथा मीडिया की निर्णायक भूमिका और इसके प्रभाव से दुनिया की आधी आबादी मतलब की महिलाओं की स्थिति ग्रसित दिखाई देती है। इसके लिए फैशन की लुभावनी नग्नता को दिखाया जा रहा है। भूमंडलीकरण के दौर में नारी की मुश्किलें बडीं है एक ओर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के अंतर्गत महिलाए वस्तुकरण की शिकार वही विकसित देशों में महिलाए निर्धनता एंव भेदभाव का शिकार हो रही है जबकि निर्धन और विकासशील देशो मे स्थिति और भयाभय हैं। यद्यपि नारी पारिवारिक पितृसत्तात्मक व्यवस्था से बाहर तो आई है किन्तु उसके अस्तित्व का हनन हुआ है ,पश्चिमी देशों में इससे मुक्ति के लिए कई आन्दोलन हुए। नारी की सामाजिक स्थिति एंव उसके मानव अथिकारों के हनन को केंद्रित करते हुए कहा भी गया है ‘कि वह सब जगह है ,फिर भी कही नही उसके बिना न श्रृष्टि चलती है न समाज न घर न परिवार।’ नारी विमर्श की अवधारणा 19 शताब्दी के अंतिम दशक मे फ्रांस से सशक्त आवाज सुनाई पडती है। 20 वीं सदी मे फ्रांस की लेखिका -सीमोन ‘द बोउबर की पुस्तक ‘द सेकंड सेक्स ‘ मे समाज की उन विश्वमताओं की ओर ध्यान आकर्षित किया गया जिसके कारण दुनियाभर मे नारी हाशिए पर थी। हालांकि दुनिया के विभिन्न देशों में औपनिवेशिक ताकतो को खदेड़ने का इतिहास रहा है। वान्यारुवा नाइजीरिया में ब्रिटिश के खिलाफ लड़ाई लडी। विलिया ल्यूसिया इलिपन , क्यूबा की क्रांति मे अहम भूमिका । कॉमडेटे रमोंना, गुरिल्ला फाइटर, अमेरिकन फ्रीट्रेड के खिलाफ लड़ाई लडी। नैनी ऑफ द ममंस, जमैका की नेशनल हीरो ऐसी तामाम महिलाए विश्व को अपनी क्रांति का लोहा मनवा चुकी है।
भारत में स्त्री विमर्श का अवलोकन
भारत की प्राचीन संस्कृति में महिलाओ के सम्बन्ध मे दृष्टिकोण परिवर्तित स्वरूप मे दिखाई देता है, नारी को कभी देवी के रूप मे पूजा था, तो कभी उसे नीचा दिखाकर गरिमा की अवहेलना की जाती थी। परन्तु यह भी सत्य है कि कुछ अपवादो को छोड दिया जाये। तो कभी नारी स्वतंत्र अस्तित्व को स्वीकार नही कर पाई। उसे कभी माता,पुत्री,बहन तथा पुत्र वधु के रूप मे सम्मान प्राप्त होता था। भारतीय इतिहास की सबसे प्राचीन हड़प्पा सभ्यता को कहा जाता है, कि मातृसत्तात्मक थी और नारी को पूजनीय माना जाता था समाज मे उसे उच्च स्थान प्राप्त था नारी को उर्वरक के प्रतीक के रूप मे पूजा जाता था। ऐतिहासिक युग अर्थात ऋृगवैदिक काल मे सत्ता बदलकर मातृस्तात्मक से पितृसत्तात्मक हो गई किन्तु समाज संगठित होंने पर भी समाज में नारी की प्रतिष्ठा थी । बौद्धिक आध्यात्मिक तथा सामाजिक जीवन मे उसे स्त्री,कन्या तथा माता के रुप मे निरन्तर सम्मान प्राप्त था सामाजिक उत्सवों में पुरुषों के समान आसन ग्रहण करती थी। कन्याओं को शिक्षा का अधिकार प्राप्त था ,सभा मे भाग लेती थी सभापति के नाम से जाना जाता था। ऋग्वेद में पत्नी को ‘जायदेस्तम तमाम ‘अर्थात पत्नी ही ग्रह है शब्द प्रयोग किया गया ।|समाज मे एक पत्नी प्रचलन था किन्तु कुलीन वर्ग मे बहुविवाह की प्रथा थी। कन्याओ को विवाह की स्वतंत्रता और वर चुनने का अधिकार था। इस काल मे विदुषी महिलाए अपाला, घोषा , विशवारा की जानकारी प्राप्त होती है। ऋ्वैदिक काल मे दो अधिकार प्राप्त नहीं थे (1) राजनीति मे भाग लेने का अधिकार (2) संपत्ति मे कोई हिस्सा नही इस काल मे कई देवियां मिलती है-अदित ऊषा,सरस्वती, श्रद्धा,इडा का नाम महत्वपूर्ण है।
वैदिक काल में ऋग्वैदिक की अपेक्षा स्थिति बदलने लगी कन्याओं को उपनयन संस्कार से वंचित कर दिया गया जिससे उनकी शिक्षा बन्द हो गयी । ऐतरेय ब्राह्माण मे कन्याओं के जन्म की निन्दा की गई और उनके जन्म को चिन्ता का कारण बताया गया । मैत्राणी सहिंता में नारी को धूर्त और मदिरा की श्रेणी मे रखा गया नारी के लिए नृत्य, गान,संगीत को बढावा दिया गया,गार्गी नामक विदुषी महिला का उल्लेख मिलता है जिसने याज्ञवल्क्य को वाद विवाद में पराजित किया किन्तु ऐसे उदाहरण बहुत कम है। वशिष्ठ धर्म सूत्र मे नारी को स्वतंत्रता के योग्य नही माना गया बचपन मे पिता ,यौवन मे पति और वृद्ध होने पर पुत्र उसकी रक्षा करता था। चाणक्य ने अपनी पुस्तक मे नारी के लिए ‘असूर्यपशया अर्थात सूर्य को न देखने वाली नारी जिससे अंदाजा लगाया जा सकता की पर्दा प्रथा का प्रचलन हो चुका था राजदरबार में मणिकाओं की नियुक्ति तथा मंदिरों में देवदासी जैसी प्रथा शुरू हो चुकी थी। सातवाहन शासक अपने नाम मे अपनी माता के नाम का प्रयोग करते थे जिसमें गौतमी पुत्र शातकर्णि इस काल मे नारियों को पति के साथ पूजा करने के साक्ष्य प्राप्त है। सार्वजनिक सभा मे भाग लेना जिससे प्राप्त होता है कि दक्षिण मे नारियों को शिक्षा को अधिकार प्राप्त था। गुप्तकाल मे पहली बार घुंघट शब्द मिलता है। हर्षवर्धन की माता यशोमती अपने पति के साथ सती हो गईं थी। दिल्ली सल्तनत की स्थापना के बाद नारियों के अधिकारों मे महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए विदेशी आक्रमणो की प्रचुरता के कारण सामाजिक व्यवस्था अत्यंत कठोर हो गई तथा हर्षवर्धन की मौत के बाद राज्य समांतो के हाथों में था। जो आपस मे लडते थे, राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक पतन हो रहा था। जो आक्रमणों के कारण सल्तनत ने उन्हें तहस-नहस कर दिया नारियों के ऊपर लगे प्रतिबंध और कठोर कर दिए गये। कन्याओं का सुरक्षा की दृष्टि से बाल्यावस्था मे ही विवाह कर दिया जाता था समाज मे सतीप्रथा जौहर प्रथा प्रचालित थी जिसमें राजपूत नारियां एक साथ आत्मदाह करती थी क्योंकि विधवाओं को घृणा की द्रष्टि देखा जाता था।
भूमंडलीकरण के दौर मे नारी तमाम बदलावों के बाद आज क्या है? औरत यानि उ्पेक्षित दोयम दर्जा, या देवी जिसे पत्थरों से तराश कर बैठाया गया या फिर वह डायन जिसे पत्थरों से मारा गया। रूस युक्रेन युद्ध व फिलिस्तीन मे बलात्कार और उत्पीड़न किया गया मणिपुर मे निर्वस्त्र कर घुमाया गया या विलकिस बानो या महीसा अमीनी या इस्लामिक स्टेट द्वारा सताई गई याजिदी महिला या उन्नाव की शिकार हुई नारी या घरेलु हिंसा मे शिकार नारी, नही वह दान की वस्तु है जिसका कन्यादान किया जाता और दान करने वाला पुण्य कमाता और कहता कि चिन्ता दूर हुईं, दान लेने वाला महान हो जाता है, उसमे देवत्व समा जाता है रोटी कपडा छत देखकर, फिर चाहे राजघराने के युधिष्ठिर या झोपडी का कंगाल जो जुए पर लगा सकता है। परशुराम द्वारा पिता के इशारे पर माता का वध या गौतम का इन्द्र द्वारा छली गई पत्नी को पत्थर बना देना या शाकुंतला का निर्वासन, सीता का परित्याग, गंधारी का अंधा वैवाहिक जीवन कुंती का अभिशप्त माहत्व द्रोपदी का चीरहरण या फिर फूलनदेवी इनका जीवन सिद्ध करता है,कि नारी को हर समय कमजोर जानकर दबाया गया व शोषण किया गया। एक तीसरी दुनिया उन औरतों की भी है।जो धार्मिक, कर्मकाण्ड, अंधविश्वास, रीति-रिवाजों जैसी तमाम बेड़ियों में जकडी है। सबसे बडी संख्या इसी तरह की नारियों की है। इनके अपने अधिकारों से लेना देना तो दूर सोच भी नही पाती क्योकि यह नारी की महिमामंडित छवि में ढल गई है।
नवजागरण काल में राजा राममोहन राय,ईश्वरचंद विद्यासागर, केशवचंद सेन,ज्योतिबा फुले,सावित्रीबाई फुले,फातिमा शेख,डॉ भीमराव अम्बेडकर आदि नारी विमर्श का लम्बा इतिहास है। स्वतंत्रा के बाद – ऊषा प्रियंवदा,कृष्णा शोबती,मनुभंडारी,प्रभा खेतान, मृदुला गर्ग, मैत्रेयी पुष्पा,मामता कालिया,नासिरा शर्मा आदि स्री विमर्श में प्रमुख लेखिकाएं है। प्रभा खेतान की किताब (उपनिवेश मे स्त्री कामना की 10 वर्ताएं) महत्वपूर्ण है। सयुक्त राष्ट्र के चार्टर की प्रस्तावना में लिखा है। कि हम सयुक्त राष्ट् के लोग मूलभूत मानव अधिकारों में मानव की गरिमा और महत्व व मूल्यों में तथा स्री-पुरुष के समान अधिकारों में आस्था व्यक्त करते है। चार्टर के अनुसार 16(1)समान अधिकारों की घोषणा की गई। अनुच्छेद 23(2 )और 26(1) भी नारी के अधिकारों से जुडा है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना मे शुरुआती शब्द हम भारत के लोग अर्थात् स्त्री-पुरूष समानता दर्जा तथा संविधान के अनुच्छेद 15,16,21,43,44,325,तथा 326 आदि की नारी की स्वतंत्रा,समानता व अधिकारों से जुडे हैं।