बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस के सत्ता संभालने के बाद से देश की स्थिति गंभीर हो गई है। आर्थिक मोर्चे पर देश का हर नागरिक कर्ज में डूब चुका है, जबकि सरकार पर भारी विदेशी कर्ज का बोझ है। टका की कमजोरी और वैश्विक दबाव के कारण आर्थिक स्थिरता की चुनौतियां बढ़ गई हैं। जनता उनकी नीतियों पर सवाल उठा रही है।
Bangladesh News: बांग्लादेश में पूर्व पीएम शेख हसीना के सत्ता से बेदखल होने के बाद मोहम्मद यूनुस के हाथों में देश की कमान आई. ऐसे में सत्ता की बागडोर अपने हाथ में लेते ही उन्होंने जनता से बड़े-बड़े वादे किए थे. लेकिन उनकी सरकार के एक साल से भी कम कार्यकाल में देश की हालत और खराब हो गई है. कानून व्यवस्था से लेकर अर्थव्यवस्था तक, हर मोर्चे पर बांग्लादेश को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, हाल ही में आई एक रिपोर्ट में बताया गया है कि बांग्लादेश का हर नागरिक अब औसतन 41,000 रुपये (लगभग 483 डॉलर) के कर्ज तले दब चुका है. यह आंकड़े बांग्लादेश बैंक द्वारा जारी किए गए हैं, जिनके अनुसार देश पर कुल विदेशी कर्ज अब 103.64 अरब डॉलर तक पहुंच गया है. इस खुलासे के बाद देश में चिंता और असंतोष का माहौल बन गया है.
आमदनी बढ़ी, लेकिन बोझ भी बढ़ा
बांग्लादेश सांख्यिकी ब्यूरो के शुरुआती आंकड़ों के मुताबिक, वित्तीय वर्ष 2023-24 में देश की प्रति व्यक्ति आय 2,738 डॉलर तक पहुंच गई है. हालांकि आमदनी बढ़ी है, पर देनदारियों में भी तेजी से इजाफा हुआ है. ऐसे में सवाल उठता है कि इस आर्थिक प्रगति का लाभ किसे मिल रहा है, और इसकी कीमत कौन चुका रहा है?
सरकार पर सबसे ज्यादा कर्ज
बांग्लादेश के कुल बाहरी कर्ज में से 84.21 अरब डॉलर का बोझ अकेले सरकार पर है. देश की आबादी लगभग 17.4 करोड़ है, और हर व्यक्ति पर यह कर्ज अब दोगुना हो चुका है. जबकि 2015-16 में यह 257 डॉलर प्रति व्यक्ति था.
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कमजोर टका और वैश्विक दबाव
बांग्लादेशी मुद्रा टका की गिरती कीमत, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ब्याज दरों में वृद्धि और वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता के चलते देश का कर्ज और बढ़ने की आशंका है. इससे सरकार के पास विकास योजनाओं पर खर्च करने की क्षमता भी कम हो सकती है और अर्थव्यवस्था को स्थिर बनाए रखना कठिन हो सकता है.
अगस्त 2024 के बाद बढ़ी मुश्किलें
अगस्त 2024 में जब यूनुस ने देश की कमान संभाली, तब से हालात और बिगड़ गए हैं. उनकी नीतियों की विफलता के कारण देश में विरोध की लहर उठ चुकी है. जनता अब उनकी नीतियों और वादों पर सवाल उठा रही है.