महाकुंभ 2025 के शुभ अवसर पर आध्यात्मिक कार्यों का आरंभ हो चुका है। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में आयोजित इस महायज्ञ में जूना अखाड़े ने एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक पहल की है। इस बार महिला और पुरुष दोनों को नागा संत बनाने की परंपरा का निर्वाह करते हुए जूना अखाड़े ने लगभग 100 महिलाओं को नागा संत के रूप में दीक्षा दी है।
महिला नागा संत बनने की प्रक्रिया
नागा संन्यासिनी बनने की प्रक्रिया विशेष धार्मिक अनुष्ठानों और संस्कारों से गुजरती है। सबसे पहले, महिलाओं का मुंडन संस्कार किया गया, जो उनके सांसारिक जीवन को त्यागने का प्रतीक है। इसके बाद इन महिलाओं ने पवित्र गंगा में स्नान किया। स्नान के बाद वैदिक मंत्रोच्चार और धार्मिक विधियों के साथ उन्हें दीक्षा दी गई।
इस दौरान अखाड़े के संतों और गुरुओं ने इन महिलाओं को संन्यासी जीवन की आचार संहिता का पालन करने और अपने जीवन को पूरी तरह सनातन धर्म के प्रति समर्पित करने की शपथ दिलाई।
गुरु दीक्षा और संकल्प
अखाड़े के ध्वज के नीचे विधिपूर्वक संस्कार संपन्न किए गए। महिलाओं को गुरु के वचन सुनाए गए और भजन-कीर्तन का आयोजन किया गया। उन महिलाओं को 108 बार यह कसम दिलाई गई और इन महिलाओं ने यह शपथ ली कि वे अपने घर-परिवार और सांसारिक जीवन को पूरी तरह त्याग देंगी। इसके साथ ही, उन्होंने यह प्रण लिया कि वे कभी विवाह नहीं करेंगी और अपने जीवन को सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार और सेवा में समर्पित करेंगी।
महाकुंभ की ऐतिहासिक पहल
जूना अखाड़े की इस पहल ने महिला नागा संतों की संख्या में वृद्धि करते हुए सनातन धर्म की परंपरा में एक नया अध्याय जोड़ा है। यह आयोजन आध्यात्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण से प्रेरणादायक है, जो धर्म और परंपरा में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी को प्रोत्साहित करता है।
महाकुंभ में 45 दिनों तक चलने वाले इस महायज्ञ का यह अनुष्ठान त्रिवेणी तट पर जारी है। जूना अखाड़े की यह पहल भविष्य के लिए एक प्रेरणा है, जो धार्मिक परंपराओं को समावेशी और सशक्त बनाने की दिशा में एक कदम है।
ये सभी माताएं संन्यास लेकर सनातन और देश की सेवा करेंगी – जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर ऋषि भारती
बता दे कि जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर ऋषि भारती जी महाराज ने कहा कि ये सभी माताएं संन्यास लेकर सनातन और देश की सेवा करेंगी। रविवार पूरी रात अपना अनुष्ठान करेंगी और फिर अखाड़े के ध्वज के नीचे पूरे विधि-विधान से संस्कार किए जाएंगे। अपने गुरु महाराज के सानिध्य में ये सभी महिलाएं अपने जीवन को देश और सनातन के प्रति समर्पित करेंगी। त्रिवेणी तट पर संत बनाने की प्रक्रिया आरंभ हो गई है। इस दौरान ये लोग अपना भी पिंड दान करेंगी।