उत्तराखंड समान नागरिक संहिता (यूसीसी) का मसौदा तैयार करने वाली विशेषज्ञ समिति की सदस्य और दून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर सुरेखा डंगवाल ने कहा कि यूसीसी न केवल महिलाओं और बच्चों की सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा को मजबूत करती है, बल्कि विवाह संस्था को भी मज़बूत करेगी। प्रो. सुरेखा डंगवाल ने एक बयान में इस बात पर प्रकाश डाला कि उत्तराखंड यूसीसी का सार लिंग आधारित भेदभाव को समाप्त करके समानता स्थापित करना है। उन्होंने कहा कि ऐसे कई मामले सामने आ रहे हैं, जिनमें महिलाओं को यह भी नहीं पता था कि उनके पति ने दूसरी शादी कर ली है।
उन्होंने कहा कि “कुछ स्थानों पर धार्मिक परंपराओं की आड़ में भी ऐसा किया जा रहा था। ऐसे में अब विवाह पंजीकरण अनिवार्य होने से महिलाओं के साथ इस तरह की धोखाधड़ी की संभावना कम हो जाएगी।
साथ ही इससे 18 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों की शादी चोरी-छिपे करने की कुप्रथा पर रोक लगेगी। इससे बेटियां अपनी उच्च शिक्षा निश्चिंतता के साथ जारी रख सकेंगी।” सुरक्षा डंगवाल के अनुसार उत्तराखंड यूसीसी यह भी सुनिश्चित करता है कि किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर न केवल पत्नी और बच्चों बल्कि माता-पिता को भी मृतक की संपत्ति पर समान अधिकार मिले। इससे बुजुर्ग माता-पिता के अधिकारों की भी रक्षा होगी।
इसी तरह लिव-इन से पैदा हुए बच्चे को भी विवाह से पैदा हुए बच्चे की तरह माता-पिता द्वारा अर्जित संपत्ति में अधिकार दिए गए हैं। इससे लिव-इन रिलेशनशिप में जिम्मेदारी का भाव आएगा, साथ ही विवाह एक संस्था के रूप में समृद्ध होगा और स्पष्ट दिशा-निर्देशों के कारण कोर्ट केस भी कम होंगे। सुरेखा डंगवाल ने कहा कि भारत का संविधान दो वयस्क नागरिकों को अपनी पसंद का जीवन साथी चुनने की अनुमति देता है।
उन्होंने आगे कहा कि “इसके लिए विशेष विवाह अधिनियम पहले से ही मौजूद है, इसमें आपत्तियां भी मांगी जाती हैं। अब इसी तरह कुछ मामलों में अभिभावकों को जानकारी दी जाएगी। वहीं लव जिहाद की घटनाओं को रोकने के लिए धर्मांतरण कानून पहले से ही लागू है।” उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने 27 जनवरी को राज्य में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के आधिकारिक कार्यान्वयन की घोषणा की। इस मील के पत्थर को मनाने के लिए मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि 27 जनवरी को प्रतिवर्ष “यूसीसी दिवस” के रूप में मनाया जाएगा, जो भारत के स्वतंत्रता के बाद के इतिहास में इसके महत्व को दर्शाता है।