अक्सर सरकारी अस्पतालों में ऐसा देखा जाता है कि डॉक्टर साहब अपनी ड्यूटी के समय में प्राइवेट क्लीनिक में होते हैं। ऐसे डॉक्टरों पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने संज्ञान लेते हुए कड़े निर्देश दिए हैं। उत्तर प्रदेश में सरकारी डॉक्टरों के द्वारा निजी प्रैक्टिस से जुड़े मामले पर सुनवाई की। इस दौरान कोर्ट ने प्रदेश में निजी प्रैक्टिस कर रहे डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने और अधूरी रिपोर्ट देने पर नाराजगी जताई और सरकार से ऐसी कार्रवाई करने के निर्देश दिए, जिससे डॉक्टर खुद ही प्राइवेट प्रैक्टिस छोड़ दें। हाईकोर्ट ने इस मामले में प्रमुख चिकित्सा शिक्षा सचिव से व्यक्तिगत हलफनामा तलब करते हुए जवाब मांगा है।
37 जिलों के डीएम कर रहे जांच
यह याचिका मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के किडनी रोग विभाग के अध्यक्ष डॉक्टर अरविंद गुप्ता की ओर से दाखिल की गई, जिस पर न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने सुनवाई की। कोर्ट के निर्देश पर प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा विभाग ने हलफनामा दाखिल कर बताया कि प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाले सरकारी डॉक्टरों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही की गई है। हलफनामे में बताया गया कि प्रदेश के 37 जिलों के डीएम ने निजी प्रैक्टिस करने वाले सरकारी डॉक्टरों को चिन्हित किया है। इनके खिलाफ जांच की जा रही है।
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अधूरी पेश की गई रिपोर्ट
कोर्ट के अनुसार सचिव की ओर से पेश हलफनामे में पाया गया है कि सरकार उन डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई करने में चुप है जो निजी प्रैक्टिस में लिप्त पाए जाते हैं। कार्रवाई की जा रही है लेकिन कार्रवाई किस स्थिति में है और कितने डॉक्टरों पर एक्शन हुआ इसका कोई जिक्र नहीं है। महाधिवक्ता ने कोर्ट को इस मामले में जल्द ही कार्रवाई करने का आश्वासन दिया है और अन्य जिलों में भी ऐसे डॉक्टरों की रिपोर्ट पेश करने के लिए कुछ समय मांगा है।
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