निमोनिया पैदा करने वाले कीटाणुओं में छिपा है एक अहम वायरस, अध्ययन में खुलासा - Punjab Kesari
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निमोनिया पैदा करने वाले कीटाणुओं में छिपा है एक अहम वायरस, अध्ययन में खुलासा

टेलोमेर फेज: बैक्टीरिया के छिपे दुश्मन का खुलासा

एक अध्ययन के अनुसार, एक वायरस जिसे लंबे समय से वैज्ञानिक रूप से विचित्र माना जाता रहा है, वह खतरनाक बैक्टीरिया से लड़ने में मदद कर सकता है।

अध्ययन बैक्टीरियोफेज (फेज) पर केंद्रित था। ये ऐसे वायरस हैं जो बैक्टीरिया को संक्रमित करते हैं और कई रूपों में आते हैं। विशेष रूप से, शोधकर्ताओं ने टेलोमेर फेज (एक ऐसी संरचना जो डीएनए गुणसूत्रों में मौजूद होती है) की जांच की।

समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, ये वायरस केवल पैसिव (निष्क्रिय) पैसेंजर्स नहीं हैं, बल्कि ये अच्छे बैक्टीरिया को बुरे बैक्टीरिया को नष्ट करने में मदद कर सकते हैं।

पिछले अध्ययनों ने केवल उनके डीएनए रेप्लिकेशन को डिकोड किया था। साइंस एडवांस में प्रकाशित नए अध्ययन में पता चला है कि टेलोमेर फेज ले जाने वाले बैक्टीरिया विषाक्त पदार्थ पैदा करते हैं जो प्रतिद्वंद्वी बैक्टीरिया को मार देते हैं।

मोनाश बायोमेडिसिन डिस्कवरी इंस्टीट्यूट बैक्टीरियल सेल बायोलॉजी लैब के प्रमुख ट्रेवर लिथगो ने बताया, “20 से अधिक वर्षों के गहन जीवाणु जीनोमिक्स के दौरान पाया गया कि टेलोमेर फेज तो हमारी नजरों से छिपे। इससे स्पष्ट है कि हम जीव विज्ञान के एक पूरे पहलू से चूक गए।”

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लिथगो ने कहा कि क्लिनिकल क्लेबसिएला स्ट्रेन को अनुक्रमित करने से चौथे टेलोमेर फेज की खोज हुई।

शोधकर्ता ने कहा कि विश्लेषण से पता चला कि टेलोमेर फेज दुर्लभ नहीं हैं। ये क्लेबसिएला के हजारों स्ट्रेन्स में से अत्यधिक प्रचलित हैं, जिसमें जलमार्ग वातावरण से एकत्र किए गए स्ट्रेन भी शामिल हैं।

लिथगो ने कहा- इसके अलावा, विषाक्त पदार्थों की खोज – ‘टेलोसिन’ (टेलोमेर-फेज विषाक्त पदार्थों के लिए) – को एक जीवाणु प्रबंधन रणनीति बनाने में सक्षम पाया गया। टेलोमेर फेज ले जाने वाले ‘गुड’ बैक्टीरिया साथ के ‘बैड’ क्लेबसिएला को मारने में सक्षम होंगे और यही ‘बैड’ बैक्टीरिया एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी क्लेबसिएला हैं।

लिथगो प्रयोगशाला से सैली बायर्स ने कहा, “अब हम यह समझना चाहते हैं कि मेजबान कैसे विष का स्राव करता है और यह भी समझना चाहते हैं कि विष कैसे अनजान जीवाणु तक अपनी पहुंच बनाता है।”

टीम का मानना ​​है कि ये मददगार वायरस कई अन्य बैक्टीरिया में भी मौजूद हो सकते हैं।

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