'एक तरफ कुआं, एक तरफ खाई', इस्तीफा देने के फैसले से घिरे मोहम्मद यूनुस - Punjab Kesari
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‘एक तरफ कुआं, एक तरफ खाई’, इस्तीफा देने के फैसले से घिरे मोहम्मद यूनुस

इस्तीफे के विचार से मोहम्मद यूनुस की छवि पर संकट

बांग्लादेश की राजनीति में उथल-पुथल के बीच प्रोफेसर मोहम्मद यूनुस इस्तीफे के विचार से घिरे हैं। इस्तीफा देने पर उन पर कमजोर नेतृत्व का आरोप लग सकता है, जबकि पद पर बने रहने से उन्हें विरोध का सामना करना पड़ेगा। यूनुस का हर कदम बांग्लादेश के भविष्य की दिशा तय करेगा।

Bangladesh News: बांग्लादेश की राजनीति इस समय जबरदस्त उथल-पुथल के दौर से गुजर रही है. अंतरिम सरकार के प्रमुख प्रोफेसर मोहम्मद यूनुस के मन में इस्तीफे का विचार उनके हालत को और जटिल बना रहा है. हाल ही में हुई सलाहकार परिषद की एक बैठक में उन्होंने खुद कहा कि अब वे आगे काम करना उनके लिए कठिन हो गया है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या यूनुस वाकई इस समय पद छोड़ सकते हैं?

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, अगर यूनुस पद से हटते हैं, तो उन पर कायर होने और कमजोर नेतृत्व का आरोप लग सकता है. वहीं, अगर वे अपने पद पर बने रहते हैं, तो चारों तरफ से उठ रहे असंतोष और विरोध का सामना करना पड़ेगा. देश के इस नाजुक दौर में उनका हर कदम केवल उनकी छवि नहीं, बल्कि बांग्लादेश के भविष्य की दिशा भी तय करेगा.

सेना की स्पष्ट चेतावनी

बांग्लादेश की मौजूदा स्थिति में सेना की भूमिका बेहद निर्णायक बन गई है. सेना प्रमुख वाकर-उज-जमां ने दो टूक कहा है कि दिसंबर तक चुनाव हर हाल में कराए जाने चाहिए. उनका मानना है कि देश को स्थिरता केवल एक लोकतांत्रिक रूप से चुनी सरकार ही दे सकती है, न कि कोई तात्कालिक अस्थायी व्यवस्था. इस बयान को यूनुस के लिए एक चेतावनी नहीं, बल्कि अल्टीमेटम माना जा रहा है.

छात्र संगठनों ने भी जताई नाराजगी

बता दें कि शुरुआत में प्रो. यूनुस के समर्थक रहे छात्र संगठन अब विरोध के सुर में हैं. उनका कहना है कि जब तक पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के शासनकाल की कथित अनियमितताओं की जांच और सजा नहीं होती और चुनाव प्रणाली में व्यापक सुधार लागू नहीं होते, तब तक वे चुनाव को स्वीकार नहीं करेंगे. यूनुस एक ऐसे मोड़ पर हैं जहां जल्दी चुनाव कराने से छात्र नाराज़ होंगे, और सुधारों पर ज्यादा ध्यान देने से सेना और विपक्ष की नाखुशी मोल लेनी पड़ेगी.

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विपक्ष ने भी दी चेतावनी

पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया की पार्टी बीएनपी और कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी ने सरकार पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है. दोनों दलों के बीच हाल ही में हुई बैठकों में यह तय किया गया है कि यदि सरकार जल्द ही चुनाव का स्पष्ट खाका पेश नहीं करती, तो वे सड़कों पर उतरने को मजबूर होंगे. बीएनपी महासचिव मिर्जा फखरुल इस्लाम ने साफ कहा है कि अब बिना किसी ठोस योजना के वे अंतरिम सरकार का समर्थन नहीं करेंगे.

राष्ट्रीय सरकार का विचार

यूनुस फिलहाल सभी दलों से संवाद कर एक सर्वदलीय राष्ट्रीय सरकार का विकल्प तलाशने में जुटे हैं. लेकिन विपक्ष इस विचार को नकार चुका है. बीएनपी का कहना है कि अगर तय समय पर चुनाव नहीं हुए, तो वे किसी नई अस्थायी सरकार को वैध नहीं मानेंगे. यूनुस के सामने अब तीनों रास्ते कठिन हैं, इस्तीफा देना, पद पर बने रहना या नई व्यवस्था लागू करना.

सुधार, न्याय और चुनाव

सरकार के एक वरिष्ठ सलाहकार और पर्यावरण मंत्री सायदा रिजवाना हसन ने बताया है कि फिलहाल तीन मुख्य मुद्दों पर काम किया जाना है, चुनाव कराना, संस्थागत सुधार लागू करना और अवामी लीग के नेताओं के खिलाफ कार्रवाई. एक अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण की स्थापना की जा चुकी है और कार्यवाही भी जल्द शुरू होने वाली है. लेकिन उन्होंने यह भी स्वीकारा कि अगर राजनीतिक सहयोग नहीं मिला, तो ये सारे प्रयास अधूरे रह सकते हैं.

मीडिया की यूनुस से अपील

यूनुस को पद पर बने रहने की अपील न सिर्फ सरकार के भीतर से, बल्कि बाहर से भी आने लगी है. कई प्रतिष्ठित पत्रकार, शिक्षाविद और नागरिक संगठनों का मानना है कि यूनुस का इस समय पद छोड़ना पूरे देश के साथ धोखा होगा. उनके अनुसार, जब बांग्लादेश संकट में था, तब यूनुस एक आशा की किरण के रूप में उभरे थे. अब जब देश को उनकी सबसे ज्यादा जरूरत है, तो उन्हें पीछे नहीं हटना चाहिए.

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