नई दिल्ली: भारतीय कबड्डी टीमों ने एक बार फिर एशिया कप जीत कर महाद्वीप मे भारत की बादशाहत को साबित किया है। फाइनल मे भारत ने पुरुष वर्ग मे परंपरागत प्रतिद्वंदी पाकिस्तान को और महिलाओं ने कोरिया को आसानी से परास्त किया। यह सिलसिला वर्षों से चला आ रहा है। हालांकि पाकिस्तान और ईरान की टीमों ने कुछ एक अवसरों पर भारतीय चुनौती को कड़ी टक्कर दी है लेकिन भारत को हरा पाना इन देशों के लिए आसान काम नहीं है।
एशियाई खेल हों या विश्व चैंपियनशिप भारतीय खिलाड़ी सभी पर भारी पड़ते आ रहे हैं। एशिया कप की जीत के साथ भारत के खाते में एक और खिताब जुड़ गया है। ज़ाहिर है फिलहाल एशिया और विश्व में भारतीय कबड्डी की काट किसी के पास नहीं है। लेकिन इसके आगे क्या है, पिछले तीस सालों से यह सवाल बार-बार पूछा जा रहा है। आख़िर कब कबड्डी को ओलंपिक का दर्जा मिलेगा। बेशक इस खेल में भारत बड़ी ताकत है और स्टार टीवी ने कबड्डी की लोकप्रियता को बढ़ाया है। देश-विदेश में इस खेल को पसंद किया जा रहा है। फिर भी ज़्यादातर देश कबड्डी को अपनाने के लिए तैयार नहीं हैं।
एशिया में कोरिया, ईरान, थाईलैंड, बांग्लादेश, पाकिस्तान, नेपाल श्रीलंका की टीमें ही यदा-कदा ही कबड्डी में दिलचस्पी दिखाते हैं किंतु सच्चाई यह है कि गंभीर कोई भी नहीं है। कभी कभार नाइजीरिया और कनाडा जैसे देश भी खानापूरी में शामिल होते हैं लेकिन यूरोप, लेटिन अमेरिका और अफ्रीका के ज़्यादातर देश इस खेल को जानते पहचानते नहीं या उनकी कदापि रूचि नहीं है। कुल मिलाकर प्रयास भारत को ही करने होंगे। यदि भारत इस खेल में विश्व और ओलंपिक स्तर पर रुतबा कायम करना है तो खेल का विस्तार ज़रूरी है। ऐसा तब ही हो पाएगा जब कबड्डी को दुनिया का खेल बनाया जाए।
(राजेंद्र सजवान)