नई दिल्ली: देश के सर्वकालीन एथलीटों मे शुमार किए जाने वाले मिल्खा सिंह और पीटीउषा की राय मे भारत एथलेटिक मे इसलिए पिछड़ रहा है क्योंकि इस खेल के प्रति आम बच्चे और युवा की सोच बहुत अच्छी नहीं है। अर्थात अन्य खेल उसे रिझाते हैं जबकि खेलों की जननी के रूप मे विख्यात एथलेटिक को वह नीरस और उबाऊ खेल मानता है। पीटी उषा ने एक साक्षात्कार मे कहा कि जब युवा और उनके मा -बाप क्रिकेट की तरफ भाग रहे हैं और अपेक्षाकृत कम मेहनत से कम समय मे लाखों करोड़ों कमाने योग्य बन जाते हैं तो भला खून पसीना कौन बहाना चाहेगा? क्यों कोई एक एक सेकेंड और एक एक सेंटीमीटर के लिए सालों बर्बाद करेगा ? मिल्खा सिंह तो सॉफ तौर पर कहते हैं कि सरकार की ग़लत नीतियों और क्रिकेट के प्रति अनावश्यक प्रेम का ही नतीजा है कि हर बच्चा पैदा होते ही क्रिकेटर बनने का सपना देखने लगता है। एथलेटिक मे उसे भविष्य सुरक्षित नज़र नहीं आता। एथलेटिक से जुड़े कुछ पूर्व चैम्पियन भी मानते हैं कि भारत मे एक खास वर्ग के बच्चे ही एथलेटिक को अपनाते हैं।
दूसरी तरफ क्रिकेट, फुटबॉल, हॉकी, टेनिस, बैडमिंटन, बास्केटबाल जैसे खेलों मे खिलाड़ियों की भरमार है। बहुत कम माता-पिता अपने बच्चों को एथलेटिक मे डालना चाहते हैं। कारण, इस खेल मे सफलता प्रतिशत अन्य खेलों की तुलना मे काफ़ी कम है। कई खिलाड़ी अपना करियर एथलेटिक से शुरू करते हैं और धीरे धीरे हॉकी, फुटबॉल आदि खेलों मे शिफ्ट हो जाते हैं। एथलेटिक मे ऊंचा मुकाम पाने वाले भारतीय एथलीटों के अनुसार एक एथलीट अपना श्रेष्ठ देकर भी ऐसा सम्मान हासिल नहीं कर पता जैसा उसे कुश्ती और कबड्डी मे कुछ सालों की मेहनत से मिल जाता ह। अक्सर यह सवाल पूछा जाता है कि भारतीय एथलीट आज तक एक भी ओलंपिक पदक क्यों नहीं जीत पाए ?
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(राजेंद्र सजवान)