भारतीय क्रिकेट इतिहास में कई किस्से ऐसे हैं, जो फैंस को हैरान कर देते हैं। ऐसा ही एक वाकया साल 2004 में वीरेंद्र सहवाग और टीम के तत्कालीन कोच जॉन राइट के बीच हुआ था, जब एक वनडे मैच में जल्द आउट होने के बाद जॉन राइट ने सहवाग को गुस्से में धक्का दे दिया था।
कैसे शुरू हुआ विवाद?
जॉन राइट, जो भारतीय क्रिकेट टीम के पहले विदेशी कोच थे, साल 2000 से 2005 तक इस पद पर रहे। उनके कार्यकाल में भारतीय टीम ने कई यादगार जीत दर्ज कीं, 2001 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ ऐतिहासिक टेस्ट सीरीज जीत, 2003-04 में ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट सीरीज ड्रॉ और 2003 वर्ल्ड कप फाइनल तक पहुंचना उन्हीं के मार्गदर्शन में हुआ। लेकिन उनके कार्यकाल में एक विवाद भी सामने आया, जो सहवाग से जुड़ा था।
2004 के इंग्लैंड दौरे के दौरान एक वनडे मैच में सहवाग जल्दी आउट हो गए, जिससे जॉन राइट काफी नाराज हो गए। उनकी नाराजगी इतनी बढ़ गई कि उन्होंने गुस्से में आकर सहवाग को कॉलर से पकड़ लिया और धक्का दे दिया।
सहवाग का रिएक्शन
इस घटना के बाद सहवाग बेहद गुस्से में आ गए और उन्होंने टीम मैनेजर राजीव शुक्ला से शिकायत की। सहवाग ने कहा,
“कैसे एक गोरे (विदेशी) ने मुझे मारा?”
टीम मैनेजमेंट को यह घटना गंभीर लगी, और फिर राजीव शुक्ला और अमृत माथुर ने दोनों को समझाने की कोशिश की। बाद में जॉन राइट और सहवाग ने एक-दूसरे से माफी मांग ली।
सचिन तेंदुलकर ने कैसे संभाला मामला?
इस घटना को लेकर सहवाग बहुत परेशान थे। राजीव शुक्ला ने जॉन राइट से कहा कि किसी खिलाड़ी के साथ ऐसा बर्ताव करना सही नहीं है। इस पर राइट ने सफाई दी कि,
“मैंने सहवाग को एक बेटे या शिष्य की तरह समझकर ऐसा किया था। मैं चाहता था कि वह बेहतर शॉट खेले और टीम के लिए अच्छा प्रदर्शन करे।”
हालांकि, इसी बीच सचिन तेंदुलकर ने मामले को शांत करने में अहम भूमिका निभाई। राजीव शुक्ला ने बताया कि सचिन ने उन्हें अलग ले जाकर समझाया कि अगर जॉन राइट से जबरदस्ती माफी मंगवाई गई, तो इससे कोच का टीम पर जो प्रभाव है, वह खत्म हो सकता है।
कैसे खत्म हुआ विवाद?
सचिन की इस सलाह के बाद राजीव शुक्ला ने दोनों पक्षों को समझाया, और आखिर में सहवाग ने खुद कहा कि जॉन राइट को माफी मांगने की जरूरत नहीं है। इस तरह यह विवाद खत्म हो गया और दोनों के बीच रिश्ते फिर से सामान्य हो गए।
जॉन राइट और सहवाग की जोड़ी ने भारत को दिलाई कई सफलताएं
इस विवाद के बावजूद, सहवाग और जॉन राइट के संबंध आगे भी अच्छे रहे। सहवाग ने कोच की गाइडेंस में कई यादगार पारियां खेलीं और भारतीय टीम को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने में मदद की। यह वाकया भले ही विवादित रहा हो, लेकिन इससे यह भी साफ हुआ कि एक अच्छा कोच वही होता है जो अपने खिलाड़ियों के प्रदर्शन को लेकर जुनूनी हो और उनकी सफलता के लिए हरसंभव कोशिश करे।