देश तो आज़ाद हो गया, लेकिन आज भी ‘गुलाम’ है BCCI का Logo - Punjab Kesari
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देश तो आज़ाद हो गया, लेकिन आज भी ‘गुलाम’ है BCCI का Logo

हम हिंदुस्तानियों के खून में क्रिकेट खेल बसता है। हमें क्रिकेट खेल अंग्रेजों ने ही सिखाया था लेकिन

हम हिंदुस्तानियों के खून में क्रिकेट खेल बसता है। हमें क्रिकेट खेल अंग्रेजों ने ही सिखाया था लेकिन आज उन्हें उनके ही खेल में मात देने की ताकत रखते हैं।

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इतना ही नहीं भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड यानी BCCI दुनिया का सबसे अमीर और प्रभावशाली क्रिकेट बोर्ड भी बन चुका है। लेकिन बीसीसीआई से जुड़ी एक बात ऐसी है जिससे हम हिंदुस्तानियों के मन में टीस उठ सकती है।

रजिस्ट्रेशन है सोसाइटी के रूप में

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यह बात साल 1928 की है। बता दें कि भारत देश में क्रिकेट के विकास के लिए बीसीसीआई का गठन किया गया। इस बोर्ड का रजिस्ट्रेशन तमिलनाडु सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम के तहत एक सोसाइटी के रूप में हुआ। BCCI का भी अपना संविधान है, जिसमें बोर्ड के संचालन के साथ ही खिलाडिय़ों और प्रशासकों के लिए नियम और दिशा-निर्देश हैं। दुनिया के बाकी क्रिकेट बोड्र्स की तरह बीसीसीआई का भी एक लोगो है, जो इंडियन क्रिकेटी टीम की पहचान भी है।

इंस्पायर्ड है अंग्रेजों के अवॉर्ड से लोगो

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भारतीय क्रिकेट टीम के इस लोगो में सूर्य के आकार के जैसा ही एक गोला है, जिसके बीच में स्टार यानी तारा बना हुआ है। दुख की बात तो यह है कि लोगो अंग्रेजों की गुलामी का प्रतीक भी है। बता दें कि यह लोगो अंग्रेजों द्वारा शुरू किए गए अवॉर्ड ऑर्डर ऑफ द स्टार ऑफ इंडिया से लिया गया है।

क्यों नहीं है लोगो में तिरंगा या अशोक चक्र?

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आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष अग्रवाल ने एक बार प्रधानमंत्री कार्यालय से पूछा, ”जब BCCI का लोगो 90 फीसदी तक अंग्रजों द्वारा शुरू किए गए अवॉर्ड से मेल खाता है, ऐसे उसको अब तक बदला क्यों नहीं गया?”  सुभाष ने अपनी याचिका में यह भी पूछा था कि BCCI के वर्तमान लोगो में तिरंगा झंडा या अशोक चक्र या फिर अशोक स्‍तंभ को जगह क्‍यों नहीं दी गई है। बता दें कि 2012 में BCCI और अन्य खेल संस्थानों को सूचना के अधिकार के अंतर्गत लाने की बात हुई थी। हालांकि, अभी तक इस पर कोई निर्णय नहीं लिया जा सका है।

यह अवॉर्ड इसलिए देते थे अंग्रेज

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बता दें कि अंग्रेजों द्वारा दिए जाने वाले इस अवॉर्ड के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है। इसकी वजह भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम 1857 विद्रोह में छुपा हुआ है। अंग्रेजों ने इस अवॉर्ड की शुरूआत ब्रिटिश क्राउन के साथ वफादारी निभने वाले राजाओं और राजकुमारों को खुश करने के लिए 1861 में की थी। यानी यह महज कहने के लिए वीरता पुरस्कार था।

ढो रहे हैं आज भी गुलामी की निशानी

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खास बात यह है कि यह अवार्ड भारत की आजादी के बाद 1948 में भी दिया गया था। इस सम्मान को पाने वाले अंतिम जीवित व्यक्ति अलवर केराजा थे। इनका निधन साल 2009 में हो गया था। बहरहाल, अंग्रेज भारत छोड़कर चले गए हैं, लेकिन आजादी के 70 साल बाद भी हम उनकी गुलामी के इस प्रतीक को आज भी ढो रहे हैं। वह भी देश का प्रतिनिधित्व करने वाले खिलाडिय़ों के माथे पर सजाकर।

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