राजस्थान के दो लोकसभा और एक विधानसभा उपचुनाव में बीजेपी की हार ने वसुंधरा राजे के लिए आगे की राह मुश्किल कर दी है। बड़ा सवाल है कि इसी साल दिसंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं और तीन उपचुनाव में हार का इतना ज्यादा अंतर है तो फिर विधानसभा चुनाव के नतीजे क्या होंगे। वसुंधरा राजे की दूसरी पारी में सरकार पर कोई बड़े आरोप नहीं लगे। वसुंधरा राजे ने गरीबों के लिए और भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कई तरह की योजनाएं राजस्थान में शुरू की हैं लेकिन इसका कोई असर चुनाव में देखने को नहीं मिला। जिस तरह से बीजेपी मांडलगढ़ विधानसभा उपचुनाव और अलवर और अजमेर लोकसभा उपचुनाव में हारी है उसे देखकर लगता है कि वसुंधरा सरकार के प्रति जनता में बेहद नाराजगी है। सवाल उठता है कि यह नाराजगी क्यों है। आखिर ऐसा क्यों हुआ कि राजस्थान की सबसे लोकप्रिय नेता वसुंधरा का करिश्मा चुनाव में सिर चढ़कर नहीं बोला।
भारतीय राजनीति में यह एक तरह का ट्रेंड रहा है कि उपचुनाव में ज्यादातर जीत उसी दल को मिलती हैं जो सत्ता में होता है। लेकिन राजस्थान में मामला बिल्कुल उलटा है। पिछले साढ़े 4 साल में राज्य में अब तक 8 उपचुनाव हुए जिनमें 6 बार जीत विपक्ष में बैठी कांग्रेस पार्टी को मिली और भाजपा को 2 मौकों पर जीत मिली। भाजपा के लिए अगले विधानसभा चुनाव से पहले ये शुभसंकेत नहीं है।
उपचुनाव के परिणाम भाजपा के लिए चिंताजनक इसलिए भी है क्योंकि राजस्थान में सत्ता को लेकर 1990 के बाद से एक ऐसी परंपरा चली आ रही है जिसे कोई भी पार्टी नहीं तोड़ सकी है। भाजपा ने मई, 1990 में राजस्थान में पहली पार सत्ता का स्वाद चखा, लेकिन इसके बाद यहां पर एक परंपरा चल निकली कि सत्ता एक बार भाजपा तो एक बार कांग्रेस के हाथ में गई। इस बार वसुंधरा की अगुवाई में भाजपा का राज चल रहा है और जिस तरह के हालिया परिणाम सामने आए हैं उससे पार्टी को डर सताने लगा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता भी यहां राज्य में लगातार दूसरी बार सत्ता दिलाने में नाकाफी साबित हो सकती है।
वसुंधरा राजे की राज्य में पिछले 4 साल से सरकार है, और यहां पर उनकी कार्यप्रणाली से लोगों में नाराजगी देखी जा रही है। लोगों में सत्ता विरोधी रुझान बढ़ रहा है। उपचुनावों में कांग्रेस को मिले 30 फीसदी वोट इस बात की तस्दीक करते हैं। स्थानीय लोगों में राजे सरकार के तौर तरीकों को लेकर भी नाराजगी दिख रही है। खासतौर से फिल्म पद्मावत की रिलीज, गौरक्षा के मामले समेत कई मुद्दों पर सरकार के रुख ने लोगों को निराश किया है।
हालांकि राज्य में चुनाव में 9 महीने से ज्यादा का वक्त बचा है। वसुंधरा सरकार के पास इन बचे वक्त में अपनी स्थिति सुधारने का थोड़ा-बहुत मौका बचा है, अब वक्त बताएगा कि राजस्थान में परंपरा कायम रहेगी या फिर वसुंधरा इस परंपरा को तोड़ेंगी।
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