राजस्थान में अगर दोबारा कांग्रेस की सरकार बनी तो अशोक गहलोत ही फिरसे बनेंगे सीएम चेहरा ? - Punjab Kesari
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राजस्थान में अगर दोबारा कांग्रेस की सरकार बनी तो अशोक गहलोत ही फिरसे बनेंगे सीएम चेहरा ?

राजस्थान में जबसे अशोक गहलोत को सीएम बनाया गया है तबसे ही डिप्टी सीएम सचिन पायलट के साथ

राजस्थान में जबसे अशोक गहलोत को सीएम बनाया गया है तबसे ही डिप्टी सीएम सचिन पायलट के साथ उनकी तनातना होती ही रहती है। सीएम बनने की इस लड़ाई में दोनों नेताओं की लड़ाई लंबे समय से चल रही है। कई बार खबरे भी आई की सचिन पायलट कांग्रेस छोड़ रहे है लेकिन उन्होंने इस बात  से हमेशा इनकार किया। कि वो बगावत नहीं करेंगे।
हाईकमान ने लड़ाई सुलझाने की कोशिश की
 कई बार हाईकमान ने गहलोट पायलट की लड़ाई को सुलझाने की कोशिश भी की है। बीते दिनों भी हाईकमान ने दोनों नेताओं को दिल्ली बुलाया था और दोनों की नाराजगी दूर की थी। इस दौरान कांग्रेस ने राजस्थान चुनाव में सीएम चेहरे का एलान करने से मना कर दिया था। पर इसके बाद भी माना जा रहा है कि दोनों के बीच लड़ाई खत्म नहीं हुई है।
 36 महीने से कांग्रेस के भीतर सियासी लड़ाई  जारी
एसा हम इसलिए कह रहे है क्योंकी 36 महीने से कांग्रेस के भीतर सियासी लड़ाई लड़ रहे सचिन पायलट को पार्टी राजस्थान से बाहर निकालने की तैयारी में है। उन्हें महासचिव की जिम्मेदारी मिलने की चर्चा सियासी गलियारों में है।अगर ऐसा हुआ तो आगामी चुनाव में सचिन पायलट की दखल बहुत कम रह जाएगा । पायलट के पक्ष में 2 बातें भी कही जा रहा है। 1टिकट बंटवारे में उन्हें तरजीह दी जाएगी और दूसरा की मुख्यमंत्री का चेहरा किसी को भी घोषित नहीं किया जाएगा।
2018 के चुनाव से तनातनी हुई थी शुरु
हालांकि पायलट के लिए इसे ज्यादा फायदेमंद नहीं माना जा रहा हैं। इसके पीछे  2018 के चुनाव का तर्क दिया जा रहा है। उस वक्त कई जगहों पर गहलोत के समर्थकों को टिकट नहीं मिला जिसके बाद वे निर्दलीय चुनाव लड़े थे। तब उनके  करीब 12 समर्थक जीतने में भी कामयाब रहे थे। बाद में इन्हीं  समर्थकों की बदौलत अशोक गहलोत  ने  मुख्यमंत्री कुर्सी पर दावा ठोक दिया।तब  पायलट खेमा भी इसकी शिकायत लगातार करने लगा था।
2019 से 2023 के बीच दोनों में तकरार
लेकिन बार बार पायलट को गहलोत की वजह से पीछे आना पड़ा  है एसा एक किस्सा 2019 में हुआ था। 2019 से जारी सियासी तकरार ने 2020 में बगावत का रूप ले लिया था। सचिन पायलट अपने समर्थक विधायकों के साथ हरियाणा के मानेसर चले गए थे कांग्रेस ने शुरुआत में इसे ऑपरेशन लोटस बताया था। सचिन पायलट को पहले समझौते की मोहलत दी गई, लेकिन उसके बाद उन्हें डिप्टी सीएम पद से ड्रॉप कर दिया गया।
 अशोक गहलोत को कांग्रेस अध्यक्ष बनाते समय हुई थी बगावत
इधर अशोक गहलोत ने निर्दलीय और बीएसपी विधायकों के सहारे जादुई आंकड़े को पार कर लिया।  102 विधायक के साथ अशोक गहलोत राजभवन में पहुंच गए।  सियासी गलियारों में इसे गहलोत का शक्ति प्रदर्शन माना गया।  गहलोत के समर्थन में विधायक जुटे, तो हाईकमान का भी साथ मिला। हालांकि, हाईकमान की ओर से सचिन को मनाने की कवायद भी जारी रही  जानकारों के मुताबिक सरकार न गिरती देख पायलट भी मान गए और कुछ मांगों के साथ कांग्रेस में वापस आ गए। इसके बाद भी दोनों गुट में सियासी तकरार जारी रहा।
पायलट का शक्ति प्रदर्शन
इन सबके बीच पायलट ने ये कहा था कि वो बगावत नहीं करेंगे। फिर 2 साल के लंबे इंतजार के बाद सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनने की उम्मीद जगी।  दरअसल, सोनिया गांधी के कहने पर कांग्रेस पार्टी में अध्यक्ष के चुनाव की घोषणा हुई।  अध्यक्ष पद के लिए सबसे बड़े दावेदार अशोक गहलोत ही थे। अशोक गहलोत को कांग्रेस हाईकमान ने नामांकन के लिए संदेश भी भिजवाया। गहलोत अध्यक्ष बनने के लिए तैयार भी हो गए। कांग्रेस हाईकमान ने उन्हें नामांकन से पहले मुख्यमंत्री कुर्सी छोड़ने के लिए कहा। कांग्रेस सूत्रों ने उस वक्त दावा किया कि सचिन पायलट को पार्टी ने हरी झंडी दे दी थी। इस मामले को लेकर मीटिंग हुई तो  मीटिंग से पहले ही विधायकों ने बगावत कर दी। गहलोत के करीबी मंत्री शांति धारीवाल के नेतृत्व में 89 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया।
 सचिन पायलट को दिखाया जा सकता है बाहर का रास्ता
इसके बाद 2023 में दोनों नेताओं  को कांग्रेस ने दिल्ली बुलाया और उनसे बातचीत करके दोनों के झगड़े को सुलझाया। इसके बाद भी माना जा रहा है कि सचिन पायलट को कांग्रेस बाहर का रास्ता दिखा सकती है।

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