पिछले 17 साल से खाड़ी देशों में फंसने वाले भारतीयों की मदद कर रहे है गुलाम खान - Punjab Kesari
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पिछले 17 साल से खाड़ी देशों में फंसने वाले भारतीयों की मदद कर रहे है गुलाम खान

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राजस्थान में झुंझुनूं जिले के सोती गांव के निवासी गुलाम मोहम्मद खान पिछले 17 साल से सऊदी अरब में रहते हुए खाड़ी देशों में फंसने वाले भारतीयों की मदद कर रहे है तथा वहां काम करने वाले की असामयिक मौत होने पर उनके शव भी घरों तक पहुंचाते है।

गुलाम खान ने इसके लिए वहां पर बाकायदा मारवाड़ वेलफेयर सोसाइटी बना रखी है और इससे करीब 1800 लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं। सोसायटी उन लोगों की मदद करती हैे जो एजेंटों की बदमाशी के चलते खाड़ी देशों में फंस जाते हैं। इसके अलावा हर साल करीब एक सौ लोगों के शव राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और बिहार तक पहुंचाने में सहयोग करते हैं।

खान अभी रियाद से स्वदेश आए हुए हैं और उन्होंने बताया कि वे करीब 32 साल पहले रोजी की तलाश में सऊदी अरब के रियाद गए थे। वहां उन्होंने अपना काम जमाया। इसके बाद उन्होंने देखा कि खाड़ी देशों में आने वाले अनेक लोग गलत हाथों में पड़ जाते हैं। कुछ एजेंट उन्हें गलत तरीके से वहां भेज तो देते हैं लेकिन उन्हें काम नहीं मिलता। वहां की सरकार उनके पासपोर्ट जब्त कर लेती है। उन्हें जेल में डाल देती है। किसी की मौत हो जाए तो वहां उसका दाह संस्कार करना या किसी को सुपुर्दे खाक करना भी आसान नहीं होता। इसलिए मरने वाले की मिट्टी को आखिर में उसकी जमीन पर भेजना बड़े सवाब का काम है।

उन्होंने बताया कि वर्तमान में वह एक देश की ओर से संचालित यूनाइटेड फूड कम्पनी में सुपरवाइजर पद पर कार्य कर रहें हैं। उनका परिवार रियाद में ही रहता है। उनकी एक बेटी और एक बेटा जयपुर में पढ़ रहे हैं।

उन्होंने मारवाड़ वेलफेयर सोसाइटी बनाई जिसमें वहां रहने वाले और भी लोगों को जोड़ लिया। इस सोसाइटी ने ऐसे लोगों की मदद करना शुरू कर दिया। उन्होने बताया कि लोग आते गए, कारवां बनता गया। उन्होंने बताया कि परेशान लोगों की दूतावास के माध्यम से पैरवी कर उन्हें या तो काम पर लगा दिया जाता है या फिर उन्हें वापस वतन भेजना शुरू कर दिया जाता है।

गुलाम खान ने बताया कि एक बार उन्हें पता चला कि ऐसे ही किसी साथी की मौत हो गई है। अब वहां से उसका शव वतन भेजना भी आसान नहीं था। करीब नौ हजार रियाल खर्च आता था। यानी दो लाख भारतीय रुपए। तब उन्होंने सक्षम लोगों से संपर्क कर शवों को पहुंचाने की शुरुआत की जो अनवरत जारी है।

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