भू-जल के दोहन से पंजाब, बुंदेलखंड और राजस्थान सहित देश के अन्य प्रमुख क्षेत्रों में कृषि कार्यो के लिए खतरा पैदा होने की परिस्थितियों के बीच देश में भू-जल से जुड़े विविध पहलुओं पर 11 से 13 दिसंबर तक एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है जिसमें 15 देशों के प्रतिनिधियों के भाग लेने की उम्मीद है।
जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार, इस सम्मेलन का शीर्षक भू-जल विजन 2030-जल सुरक्षा, चुनौतियां और जलवायु परिवर्तन अनुकूलता है। इसका आयोजन राष्ट्रीय हाइड्रोलॉजी संस्थान (एनआईएच), रूड़की और केन्द्रीय भू-जल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) द्वारा जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय के तत्वाधान में किया जा रहा है।
इस सम्मेलन में 15 देशों के प्रतिनिधियों के भाग लेने की उम्मीद है। इसमें 250 शोध पत्र प्रस्तुत किये जाएंगे, जिनमें 32 मुख्य सिद्धांत पर आधारित पत्र होंगे।
सम्मेलन का उद्घाटन केन्द्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री नितिन गडकरी, केंद्रीय पेयजल और स्वच्छता मंत्री उमा भारती, केन्द्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ। हर्षवर्धन, केन्द्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और डॉ। सत्यपाल सिंह करेंगे।
सम्मेलन में देश में पानी के इस्तेमाल और बदलते जलवायु परिदृश्य के अंतर्गत भू-जल की वर्तमान स्थिति और उसके प्रबंधन की चुनौतियों का जायजा लिया जाएगा। सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है, जब देश में पानी खासतौर से भू-जल परिदृश्य दिनों दिन बदल रहा है। पिछले दशकों के दौरान देश में भू-जल का इस्तेमाल कई गुना बढ़ है और आज गांवों में 80 प्रतिशत घरेलू जरूरतें, सिंचाई के पानी की 65 प्रतिशत जरूरतें, औद्योगिक एवं शहर की 50 प्रतिशत जल की जरूरतों का स्रोत हमारे भू-जल संसाधन हैं।
भू-जल के दोहन से पंजाब, बुंदेलखंड और राजस्थान सहित देश के अन्य प्रमुख क्षेत्रों में कृषि कायो’ के लिए खतरा पैदा हो रहा है, जिससे भविष्य में खाद्य सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा पैदा हो सकता है। साथ ही भारी वर्षा होने की स्थिति में देश में भू-जल के फिर से भरने की स्थिति में बदलाव आ सकता है। भू-जल के अत्याधिक दोहन के कारण अनेक इलाकों में भू-जल की गुणवथा प्रभावित होने लगी है और इसमें आर्सनिक जैसे तत्व पाए जाने लगे हैं।
इस सम्मेलन में इन ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा होगी। सम्मेलन में देश में जल संसाधनों से जुड़ विभिन्न क्षेत्रों के बीच सहक्रियाशील नीति विकल्पों पर भी गौर किया जाएगा और 2030 के विकास लक्ष्यों के लिए चुनौतियों को दूर करने के संबंध में एक रोड मैप तैयार किया जाएगा।
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