इराक हादसा : घर लौटी माटी , वारिसों का दर्द जुबां पर आया - Punjab Kesari
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इराक हादसा : घर लौटी माटी , वारिसों का दर्द जुबां पर आया

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लुधियाना-जालंधर-अमृतसर : इराक के मोसुल में इस्लामिक स्टेट के हाथों कत्ल किए गए 39 भारतीयों में 38 की अस्थियां ताबूतों में बंद होकर पिछले दिनों भारत लौटी। उन मृतक देहों में 27 जानों का संबंध पंजाब से था, जिनमें 7 अखबारों के शहर के नाम से विख्यात जालंधर और 7 गुरू की नगरी अमृतसर के अलग-अलग हिस्सो विशेषकर ग्रामीण इलाकों के रहने वाले थे। उन सभी के अवशेष सोमवार की शाम साढ़े आठ बजे जालंधर सिविल अस्पताल में अमृतसर के श्री गुरु रामदास जी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट से भारी सुरक्षा बंदोबस्त के तहत पहुंचा दिए गए और आज मंगलवार की सुबह उनके अवशेषों को ले जाने के लिए उनके वारिस और नजदीकी रिश्तेदार पहुंचे हुए थे।

जैसे ही मृतकों के अवशेषों के ताबूत उनके घरों में पहुंचे तो मौके पर मौजूद हर शख्स की आंखों में आंसुओं का सैलाब देखा गया और समस्त वातावरण चीख-पुकार से गमगीन हो गया। मृतकों की मां-बहनें और बीवियां अपने को देखने के लिए पागल हो रही थी लेकिन जिला प्रशासन और मौजूद पुलिस कर्मी उन ताबूतों को खोलने की इजाजत नहीं दे रहे थे। चंद वक्त मृतकों के ताबूत उनके घरों में रखे गए और समस्त औपचारिकताएं और अंतिम रस्मों के साथ मृतकों का अंतिम संस्कार उनके गांव के ही शमशान घाट पर ले जाकर कर दिया गया।

इस दौरान मृतकों के बच्चे सहमे दिखाई दिए। उनकी उम्मीदों का दीया तो उस वक्त ही बुझ चुका था जब चार साल बाद सीलबंद और सरकारी तालें में जकड़े ताबूतों को खोलने की इजाजत तक नही मिली। ताबूतों में ना तो जिस्म की कोई काया थी और ना ही शकल सूरत, बस चंद हडिडया परिजनों के हिस्सों में आई, जिनपर तरह-तरह के कैमीकलों का छिडक़ाव किया गया था और प्रशासन ने कैमीकल का हवाला देकर ताबूतों के अंदर झाकने तक की इजाजत नहीं दी और सीधा ही शमशान भूमि में लेकर अंतिम संस्कार कर दिए गए। चार साल के लंबे इंतजार के बाद अपनों के अवशेष मिले तो कोई बेहोश हुआ तो कई होश खो बैठे।

1- जिला जालंधर से नकोदर के नजदीक गांव अलीवाली का संदीप कुमार,
2-गांव डंडे का बलवंत राय
3-गांव बाठकला का रूपलाल
4- गांव चक देसराज का दविंद्र सिंह
5- गांव खान खाके का कुलविंद्र सिंह
6- गांव चूड़वाली का सुरजीत मेनका
7- गांव तलन का नंदलाल

1- अमृतसर के गांव बबेवाल का हरसिमरनजीत सिंह
2- मानावाला का रंजीत सिंह
3- चविंडा देवी का सोनू
4- बोयेवाली का मनजिंद्र सिंह
5- जलालउसमा का गुरचरण सिंह
6- सराकलां का जतिंद्र सिंह
7-संगुवाना का निशान सिंह

जालंधर के आदमपुर स्थित गांव चूड़वाली में सुरजीत मेनका के अवशेष ताबूत में जैसै ही पहुंचे गांव में मातम का माहौल बन गया। सुरजीत की पत्नी व मां ताबूत से लिपट-लिपट कर रोने लगे।

अमृतसर के गुरशरण सिंह की अस्थियों का बक्सा जब उनके पैतृक गांव जलालउसमा में पहुंचा तो पिछले चार सालों से अपने नौजवान पुत्र के वियोग में तड़प रहे परिवार की अश्रुधाराएं और विलाप सुनकर पत्थर दिलों का दिल पसीज गया। कुछ ही देर रूकने के बाद उसकी अस्थियों को शमशान घाट ले जाया गया। हालांकि परिवारिक सदस्यों ने अस्थियों के आखिरी दर्शन की इच्छा रोते हुए की किंतु प्रशासनिक अधिकारियों की जिद के आगे उनकी एक ना चली और आखिर गांववासियों की उपस्थिति में उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया। ऐसा ही कुछ चाविंडा देवी गांव की रहने वाली सीमा के पति सोनू का अवशेष जैसे ही एयरपोर्ट पर पहुंचा, तो वह फूट-फूट कर रोने लगी। सोनू की मां जीतो की आंखों से आंसुओं की अविरल धारा बहती रही और ताबूत पर ही बेहोश हो गई। पत्नी सीमा ने कहा कि वो मकान बनाकर आशियाना दे गए थे लेकिन अब तो मेरी दुनिया ही उड़ गई। मैं अपने दो बेटों कर्ण अजरुन के साथ इसी मकान में रहती हूं। घरों के बर्तन साफ करके बच्चों को पाल रही है।

पति ने विदेश जाने के लिए डेढ़ लाख का कर्ज लिया था, वह अभी भी सिर पर खड़ा है। सरकार को हमारी मदद करनी चाहिए। मां ने कहा कि यकीन नहीं होता कि हम जिसे ताबूत को घर ले जा रहे हैं, उसमें बेटे के अवशेष हैं।

वहीं संघवाना के कुलदीप सिंह ने बताया कि उसका भतीजा निशान सिंह ने 15 जून 2014 को अंतिम बार घर में फोन करके कहा कि आतंकी उन्हें किसी अज्ञात जगह पर लेकर जाने वाले हैं। हो सकता है भारत भेज दें या फिर किसी अन्य स्थान पर बंदी बना कर रखें। चार भाइयों में सोनू सबसे बड़ा था। 2014 में नौकरी लगने के चार माह बाद उसने 35000 रुपये भेजे थे। उन्होंने कहा कि भारत सरकार को युवाओं के पीडि़त परिवारों की आर्थिक मदद करनी चाहिए जबकि अभी तक इस तरह की कोई बात सामने नहीं आई।

इराक के शहर मौसूल में पिता गोबिंदर सिंह के आतंकियों द्वारा अगवा किए जाने के बाद ही पढ़ाई छोड़ दी। परिवार में पिता की भूमिका निभाने और अपनी छोटी बहन व मां का पालन पोषण करने के लिए नौकरी शुरु कर दी। हालांकि बहुत ज्यादा पैसे नहीं मिलते थे मगर क्योंकि परिवार में आय का कोई अन्य साधन नहीं था तो मजबूरी में कपूरथला में जगजीत डिस्टीलरी में मजदूरी शुरु कर दी।

अपनी मां अमरजीत कौर व रिश्तेदारों संग पिता के अवशेष लेने पहुंचे अमनदीप सिंह निवासी मुरार जिला कपूरथला ने बताया कि 15 जून 2014 को उसके पिता गोबिंदर सिंह का अंतिम बार मां को फोन आया। तब उसके पिता ने बताया कि आतंकियों ने उनके साथ बंगलादेशी बंदियों को अलग कर लिया है और जल्द ही वे लोग हमसे मोबाइल फोन भी ले लेंगे। हो सकता है कि इसके बाद वे (गोबिंदर) उनसे बात नहीं कर सके। क्योंकि तब वह 12वीं कर चुका था और आगे की पढ़ाई के लिए योजना बना रहा था।

इस फोन काल के बाद ही जैसे उनकी दुनियां उजड़ गई और पल में ही 8वीं कक्षा में पढ़ रही छोटी बहन करणदीप कौर की पढ़ाई और मां की जिम्मेवारी उस पर आन पड़ी। तभी उसने शराब की फैक्टरी में, जिसमें उसके पिता पहले काम कर चुके थे, काम शुरु कर दिया। हालांकि राज्य सरकार की तरफ से 4-6 माह बाद कभी दो महीनों के तो कभी 3 महीनों की पेंशन दे देती।

– सुनीलराय कामरेड

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