बेअंत सिंह हत्याकांड में भाई जगतार सिंह तारा को ‘ मौत ’ तक जेल में उम्रकैद की सजा के साथ मिला आर्थिक दंड - Punjab Kesari
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बेअंत सिंह हत्याकांड में भाई जगतार सिंह तारा को ‘ मौत ’ तक जेल में उम्रकैद की सजा के साथ मिला आर्थिक दंड

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लुधियाना-बुडैल जेल : पंजाब के महरूम मुख्यमंत्री बेअंत सिंह कत्ल मामलें में आज भारी सुरक्षा बंदोबस्त के तहत बुडैल जेल में स्थापित सीबीआई की विशेष अदालत ने कार्यवाही करते हुए खालिस्तानी समर्थक और आतंकी भाई जगतार सिंह तारा को जहां मौत तक जेल में उम्रकैद की सजा सुनाई है वही 35 हजार रूपए का आर्थिक दंड भी लगाया गया है। तारा को कुदरती मौत होने तक अब जेल में ही रहना होंगा। हालांकि जांच एजेंसी सीबीआई द्वारा जगतार सिंह तारा के लिए फांसी की सजा मांगी गई थी। इस अवसर पर तारा के पारिवारिक सदस्य भी मौजूद थे। जबकि बुडैल जेल के बाहर भारी संख्या में गर्मदलीय सिख जत्थेबंदियों के सक्रिय सदस्य और आगु जुटे हुए थे, जो बार-बार जेल के बाहर खालिस्तान जिंदाबाद और जगतार सिंह तारा के समर्थन में नारे बुलंद कर रहे थे।

तारा को बीते ही दिन इसी मामले में दोषी करार दिया गया था। जबकि उसी सजा पर फैसला आज सुनाया गया। तारा के खिलाफ धारा 302, 307, 120 बी और आम्र्स एक्ट 3, 4 के तहत केस दर्ज किया गया था। 31 अगस्त 1995 को पंजाब और हरियाणा सचिवालय के बाहर हुए बम धमाके में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की एक मानवीय बम (दिलावर सिंह जयसिंह वाला) के तहत मौत हो गई थी। इस धमाके में डेढ़ दर्जन से अधिक निर्दोष लोग भी मारे गए थे।

21 साल से पैरवी कर रहे सरकारी वकील एसके सक्सेना ने बताया कि केस में 200 से अधिक विटनेस को एग्जामिन किया गया। तारा ने कोर्ट में सीआरपीसी की धारा 313 के तहत अपना बयान दर्ज करवाने के समय इस मामले में शमूलियत कबूल की थी कि उसने ही वारदात में शामिल कार खरीदी थी। उसने दिल्ली निवासी से कार खरीदते समय खुद की पहचान वसन सिंह के नाम से करवाई थी और इसी नाम के साथ हस्ताक्षर भी किए थे। तारा ने अदालत के समक्ष कबूल किया था कि बेअंत सिंह को मारने का उसे कोई भी पछतावा या अफसोस नहीं परंतु बम धमाके के दौरान मारे गए अन्य बेकसूर मानवीय जानों के चले जाने का दुख जरूर है। तारा ने यह भी कहा है कि घटना को अंजाम देने का फैसला पूरी सोच-विचारकर सिद्धांतों के मुताबिक लिया था। तारा ने यह भी कहा था कि अकाल तख्त साहिब का मटियामेल करने की कार्यवाही ने सिख नौजवानों को हथियार उठाने पर मजबूर किया। उसने इस तथ्य को अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश जेएस सिद्धू की अदालत में भी स्वीकार किया था।

छह दोषियों को 2007 में सुनाई गई थी सजा
इस केस के 9 आरोपितों में से 6 को 27 जुलाई 2007 को तत्कालीन अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश रवि कुमार सोंधी ने दोषी पाते हुए सजा सुनाई थी। इनको हत्या, हत्या के प्रयास, आत्महत्या के लिए उकसाने, आपराधिक साजिश रचने और एक्सप्लोजिव एक्ट की धारा 4, 5 व 6 के तहत दोषी पाया गया था।

सजा पाने वालों में जगतार सिंह हवारा, शमशेर सिंह, लखविंदर सिंह, नसीब सिंह, बलवंत सिंह और गुरमीत सिंह शामिल थे। इसी के साथ इस हत्याकांड में दोषी पाए गए बलवंत सिंह राजोआणा को पटियाला जेल में 31 मार्च 2012 को फांसी देने के लिए अदालत ने वारंट जारी किए थे। हालांकि बाद में केंद्र सरकार ने इस फैसले पर रोक लगा दी थी। वहीं, नसीब सिंह को एक्सप्लोजिव एक्ट की धारा-5 में दोषी पाया गया था। इसके अलावा नवजोत सिंह को बरी कर दिया गया था। वर्ष 2004 में बुड़ैल जेल ब्रेक कर फरार हुए परमजीत सिंह भ्यौरा को बाद में सजा हुई थी, जबकि तारा भी 21 और 22 जनवरी की 2003 की रात माडल जेल से फरार हो गए थे लेकिन 2015 में उसे थाइलैंड से पकड़ा गया था। इसके बाद उसके खिलाफ केस में अधूरा रहा ट्रायल फिर से शुरू हुआ था।

– सुनीलराय कामरेड

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