लुधियाना : रविवार को पंजाब की सियासत का दिन कहा जाएं तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होंगी। सूबे में 7 अक्टूबर का दिन सुपर सियासी संडे होगा। इन दिन पंजाब की राजनीति के दो योद्धा रैलियों के माध्यम से एक-दूसरे पर हमला बोलेंगे और एक-दूसरे पर सियासी तीर छोड़ेगे। इस जंग की खास बात है कि दोनों एक-दूसरे के घरों में हुंकार भरेंगे। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर के खिलाफ एक बार फिर 91 वर्षीय नेता व पांच बार के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने मोर्चा संभाल लिया है। प्रदेश के दोनों ही कद्दावर नेता एक-दूसरे के राजनीतिक गढ़ पटियाला और लंबी में ताल ठोकें गे। अकाली दल और कांग्रेस ने अपनी रैलियों में भीड़ जुटाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है।
कैप्टन अमरिंदर लंबी में घेरेंगे बादल को, कांग्रेस की धक्केशाही के खिलाफ बादल गरजेंगे पटियाला में
कांग्रेस लंबी की रैली में डेढ़ लाख से अधिक भीड़ जुटाने का दावा कर रही है तो पंथक राजनीति करने वाले अकाली दल ने पूरे पंजाब से अपने कार्यकर्ताओं को पटियाला बुलाया है। अकाली दल को भीड़ जुटाने के लिए पार्टी संरक्षक व सबसे वरिष्ठ नेता प्रकाश सिंह बादल को मैदान में उतारना पड़ा है। बादल सक्रिय रूप से रैली की तैयारियों में जुटे हुए हैं। कैप्टन ने रैली के लिए अपनी आधी से अधिक कैबिनेट को मालवा में उतार दिया है।
सुपर सियासी संडे के केंद्र बिंदु में पंथक सियासत होगी। बेअदबी की घटनाओं के बाद बहिबलकलां गोलीकांड को लेकर कांग्रेस ने अपना पूरा फोकस बादल और सुखबीर बादल पर कर दिया है। बादल भी इस बात को अच्छी तरह समझ रहे हैं क्योंकि पंजाब की सियासत में यह बेहद नाजुक मोड़ है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कांग्रेस अगर बादलों पर अपना सियासी शिकंजा कसने में कामयाब हो जाती है तो अकाली दल कुछ समय के लिए नेताविहीन भी हो सकता है।
कांग्रेस की नीति है कि बादलों को किसी भी तरह पंथ विरोधी साबित किया जाए। कांग्रेस मान रही है कि अगर पंथ का बादलों पर से भरोसा उठता है तो आगामी लोकसभा चुनाव उसके लिए आसान हो जाएगा। अकाली दल भी कांग्रेस की इस नीति को भलीभांति समझ रहा है। यही कारण है कि अकाली दल ने मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के गृह नगर पटियाला में ही जबर विरोधी रैली करने का फैसला किया।
अकाली दल-भाजपा की सरकार के दौरान भले ही अकाली दल की सारी राजनीति सुखबीर बादल के इर्द-गिर्द घूमती रही हो, लेकिन बेअदबी कांड पर रणजीत सिंह आयोग की रिपोर्ट आने के बाद अकाली दल की सियासत के केंद्र में प्रकाश सिंह बादल हैैं। जबर विरोधी रैली से पहले जिस प्रकार से वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी के पदों से इस्तीफा दिया और खुलकर सामने आए उससे स्पष्ट हो गया कि सुखबीर बादल वरिष्ठ व दूसरी पीढ़ी के नेताओं के बीच सामंजस्य नहीं बैठा पा रहे हैं। यही वजह है कि प्रकाश सिंह बादल को खुद रैली की पूरी कमान अपने हाथ में लेनी पड़ी है।
जबर विरोधी रैली एतिहासिक होगी – सुखबीर
शिरोमणि अकाली दल की पटियाला में होने जा रही जबर विरोधी रैली को लेकर कांग्रेस डर रही है। इसीलिए वह ओछी हरकतों पर उतर आई है। कांग्रेस जितनी मर्जी जोर लगा ले, उसकी पोल खुलनी तय है।