दयाल सिंह मजीठिया कालेज मामला : सिख सरदारों की उपलब्धियों को वंचित करने की सोची-समझी साजिश : भाई हरनाम सिंह - Punjab Kesari
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दयाल सिंह मजीठिया कालेज मामला : सिख सरदारों की उपलब्धियों को वंचित करने की सोची-समझी साजिश : भाई हरनाम सिंह

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लुधियाना-अमृतसर  : दमदमी टकसाल के प्रमुख संत ज्ञानी हरनाम सिंह धुम्मा ने दिल्ली के ऐतिहासिक सायंकालीन दयाल सिंह मजीठिया कालेज का नाम बदलकर वंदे मातरम महाविद्यालय रखे जाने पर सख्त ऐतराज जताया है। उन्होंने कहा कि ऐसा करना सिख कौम के सरदारों की उपलब्धियों को झुठलाने की सोची समझी चाल है जो कभी भी बरदाश्त नहीं की जा सकती। उन्होंने सिख संगत के भारी रोष का जिक्र करते हुए कहा कि कालेज की प्रबंधकीय कमेटी द्वारा कालेज का नाम बदलकर वंदे मातरम रखने पर ही उनके विरकू मनसूबे जग जाहिर है। यह फैसला पूर्ण रूप से शरारती है और कुछ लोग फूट डालकर फिरका परस्ती सोच के तहत भाईचारे की सांझ को अलग-थलग करके देश को नुकसान करने में लगे है। उन्होंने कहा कि दयाल सिंह मजीठिया महान और सिख सरदार थे, जिनकी देश और कौम के प्रति निभाई गई सेवाएं भुलाई नहीं जा सकती। जिन्होंने आधुनिक शिक्षा प्रणाली के द्वारा नौजवानों को वक्त का प्रहरी बनाया।

जत्थेदार हरनाम सिंह ने यह भी कहा कि स. दयाल सिंह मजीठिया दूरनदेशी दिमाग वाले सिख सरदार थे जिन्होंने सियासी क्षेत्र में अपनी पहचान स्थापित करने के अलावा पंजाब नैशनल बैंक द्वारा बैंकिंग और अंग्रेजी अखबार के समूह द्वारा मीडिया में भी अहम योगदान डाला था। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में कालेज और लाइब्रेरी आदि पाकिस्तान स्थित लाहौर के अतिरिक्त हरियाणा के करनाल में सफलतापूर्वक चल रहे है।

उन्होंने दिल्ली कालेज के प्रबंधक कमेटी के चेयरमैन अमिताभ सिन्हा को लिखे पत्र में प्रबंधकों को नैतिकता बरकरार रखने की सलाह देते हुए कहा कि स. दयाल सिंह मजीठिया द्वारा 1895 में एक शिक्षा ट्रस्ट बनाकर स्थापित किया गया और दयाल सिंह कालेज से उनका नाम मिटाना मानव अधिकारों का हनन है। उन्होंने यह भी कहा कि कालेज से एक सिख सरदार का नाम हटाकर एक फिरकू और वह भी जिससे देश में पहले ही विवाद चल रहा हो, वह नाम देना ना केवल स. मजीठिया के साथ अन्याय है बल्कि देश की आजादी में सबसे अधिक कुर्बानियां देने वाले अल्प संख्यक सिख कौम के साथ भी अन्याय होगा, जिसको बरदाश्त नहीं किया जा सकता। उन्होंने भी शिरोमणि गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी के प्रधान प्रो. कृपाल सिंह बडंूगर की राय पर सहमति प्रकट करते हुए कहा कि अगर दिल्ली के प्रबंधकों ने यूनिवर्सिटी बनानी ही है तो अन्य इमारत बनाकर उसका नाम कोई भी रख लें। उन्होंने ऐसा कुछ नहीं होना चाहिए जिससे इतिहासिक विरासत खत्म होती हो।

उन्होंने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि अल्प संख्यक विरोधि नीतियों के तहत कालेज, सडक़े और अन्य स्थानों के नाम फिरकू करने से गुरेज करें।

– सुनीलराय कामरेड

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