शिवसेना के दो गुटों के बाद से ठाकरे और शिंदे गुटों के बीच वर्चस्व की लड़ाई चल रही है। दोनों धड़े खुद को असली शिवसेना बता रहे है। इसी बीच उस बड़े आयोजन की तारीख आ गई है, जिसमें शिवसेना की ब्रांड इमेज जुड़ी हुई है। इस आयोजन का नाम दशहरा रैली है। इस बार दशहरा रैली में दोनों दल अपनी ताकत दिखाने की तैयारी में हैं. जबकि इस रैली का इतिहास बताता है कि इसने शिवसेना को शक्तिशाली बनाया। 60 साल पुराने इस आयोजन की परंपरा बालासाहेब ठाकरे ने रखी थी। अब यही इतिहास ठाकरे और शिंदे के बीच खटास का कारण बन गया है।
भावनात्मक और सांस्कृतिक संबंध
दशहरा रैली का शिवसेना से बेहद भावनात्मक और सांस्कृतिक जुड़ाव है। 19 जून 1966 को इस आयोजन का विचार सबसे पहले तत्कालीन शिवसेना सुप्रीमो के रानाडे रोड स्थित आवास पर उठा था। इसके बाद उसी साल अक्टूबर में पहली बार दशहरे पर इसका आयोजन किया गया, जो शिवसेना की परंपरा में बदल गया। बाल ठाकरे के पिता, प्रबोधंकर केशव सीताराम ठाकरे एक समाज सुधारक और कार्यकर्ता थे। उन्होंने नवरात्रि पर कार्यक्रम की शुरुआत की, जो दशहरा के साथ समाप्त होता है।
दशहरा रैली में लॉन्च हुए आदित्य
शिवाजी पार्क में हर साल होने वाली इस दशहरा रैली में पूरे महाराष्ट्र से शिवसेना समर्थक जुटते थे और बालासाहेब ठाकरे उन्हें एक खास संदेश देते थे. इस संदेश का पालन पूरे साल सभी शिवसैनिकों ने किया। दूसरी ओर, शिवसेना इस रैली को अपनी सभी महत्वपूर्ण घोषणाओं के लिए लॉन्चिंग पैड के रूप में इस्तेमाल करती रही है। साल 2010 में दशहरा रैली के मौके पर आदित्य ठाकरे को राजनीति में उतारने की घोषणा की गई थी। उद्धव ठाकरे के बड़े बेटे को तब युवा सेना के प्रमुख के रूप में लॉन्च किया गया था।