पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा और उन्माद लोकतंत्र के लिए खतरा : बाबूलाल - Punjab Kesari
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पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा और उन्माद लोकतंत्र के लिए खतरा : बाबूलाल

महत्वपूर्ण योजनाऐं चलायी गयी जिससे पिछले दस वर्ष के दौरान नक्सली संगठनों में नये लोगों के शामिल होने

झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने पश्चिम बंगाल में हो रही राजनीतिक हिंसा और उन्माद को दुर्भाज्ञपूर्ण एवं लोकतंत्र के लिए खतरा करार देते हुये आज कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम रखने के लिए अनुशासन जरूरी है। श्री मरांडी ने यहां परिसदन में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था को कायम रखने के लिए अनुशासन जरूरी है। 
पश्चिम बंगाल में दोनों पक्षों की ओर से उन्माद फैलाकर राजनीतिक हिंसा को बढ़वा देना दुर्भाज्ञपूर्ण है। उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसी भी पक्ष द्वारा उन्माद फैलाना लोकतंत्र की सेहत के विपरीत और खतरनाक है। झाविमो अध्यक्ष ने कहा कि झारखंड की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत सरकार के मुख्यमंत्री रघुवर दास के नक्सली घटनाओं में कमी होने के दावे पर कहा कि पूर्ववर्ती कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन(संप्रग) सरकार में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पूर्व वित्त मंत्री पी। 
चिदम्बरम के कार्यकाल में उग्रवाद पर नकेल कसने की दिशा में किये गये प्रयास के तहत भारी संख्या में अर्द्ध सैनिक बल में जवानों की नियुक्ति की गयी। इस वजह से झारखंड समेत विभिन्न राज्यों में नक्सली-उग्रवादी घटनाओं में कमी आयी है। उन्होंने कहा कि पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार द्वारा गरीबों के कल्याण के लिए कई महत्वपूर्ण योजनाऐं चलायी गयी जिससे पिछले दस वर्ष के दौरान नक्सली संगठनों में नये लोगों के शामिल होने की तादाद में भी कमी आयी है।
मरांडी ने मुख्यमंत्री रघुवर दास के नक्सली वारदातों में कमी आने तथा नक्सलवाद के अंतिम सांसें गिनने के दावे को खारिज करते हुए कहा कि भाजपा नीत सरकार की गलत नीतियों के कारण राज्य में नक्सली वारदातों में अभी भी पुलिस के जवान शहीद हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि हाल में सरायकेला और दुमका में नक्सली हमले में जवानों के शहीद होने की घटना से सरकार का दावा खोखला साबित हुआ है। 
पूर्व मुख्यमंत्री ने राज्य सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि लोकसभा चुनाव सम्पन्न होने के बाद मुख्यमंत्री रघुवर दास के नेतृत्व में भाजपा विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट गयी है जबकि राज्य के आम लोग पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। कुएं-तालाब सूख गये हैं। नये चापाकल नहीं लगाये जा रहे हैं। खराब चापाकलों को दुरस्त कराने के मामले में सरकार उदासीन रवैया अपनाये हुए है। भीषण गर्मी में लोग पानी के लिए त्राहि-त्राहि कर रहे है। सरकार लोगों को पानी मुहैया कराने में पूरी तरह अक्षम साबित हुई है। 
श्री मरांडी ने कहा कि रघुवर सरकार ने राज्यवासियों को प्रकृति के भरोसे छोड़ दिया है। उन्होंने कहा कि सरकार विकास के मामले में जितनी भी पीठ थपथपा ले लेकिन गांवों की स्थिति भयावह है। बच्चे कुपोषण के शिकार हैं और महिलाएं खून की कमी के कारण विभिन्न रोगों से जूझ रही है। उन्होंने कहा कि राज्य में मानवीय विकास ही हालत खास्ता है। स्थिति बद से बदतर हो गयी है।
झाविमो अध्यक्ष ने हाल में सम्पन्न लोकसभा चुनाव में महागठबंधन की करारी हार की चर्चा पर कहा कि भाजपा ने लोकसभा चुनाव में सुनियोजित तरीके से समाज को बांटने का काम किया और वोटों का ध्रुवीकरण करने में सफल हुई। इस कारण उसे इतनी बड़ सफलता मिली। उन्होंने कहा कि मालेगांव की घटना में शामिल होने की आरोपी को भाजपा नेतृत्व प्रत्याशी बनने के साथ नाथूराम गोडसे का समर्थन करनेवालों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई करने के बदले माफ कर दिया है। इससे बड़ दुर्भाज्ञ और क्या हो सकता है। इस तरह भाजपा ने समाज को विभाजन के मोड़ पर ला खड़ किया है। 
श्री मरांडी ने लोकसभा चुनाव में महागठबंधन को मिली गहरी शिकस्त के संबंध में कहा कि सभी दल हार के कारणों की समीक्षा कर रह हैं। उन्होंने इसी साल झारखंड में होने वाले विधानसभा चुनाव में महागठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़ने के सवाल का जबाब देने से बचते हुए कहा कि कार्यकर्ताओं से विचार-विमर्श और सलाह के आधार ही आगे कोई फैसला लिया जायेगा। हालांकि उन्होंने यह भी कहा के महागठबंधन में शामिल दलों द्वारा विधानसभा चुनाव में भाजपा को शिकस्त देने के लिए आगे की रणनीति बनायी जा रही है। 
पूर्व मुख्यमंत्री ने भाजपा द्वारा इस साल होनवाले विधानसभा चुनाव में 65 से अधिक सीटें जीतने के दावे पर कहा कि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भी झारखंड से भाजपा के 12 सांसद निर्वाचित हुए थे। उस चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी लगभग 57 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त बनाने में सफल हुए थे। इसके बावजूद विधानसभा चुनाव में भाजपा 37 सीटों से आगे नहीं बढ़ पायी। इस बार भी लोकसभा चुनाव में उसे 60 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त मिली है। इस आधार पर भाजपा यदि राज्य में 65 विधानसभा सीट जीतने का सपना देख रही है तो यह दिवास्वप्न साबित होगा।

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