देहरादून : नगर निकाय चुनाव में भाजपा की जीत से उत्साहित सरकार अब नगर निगम की ताकत बढ़ाने जा रही है। नगर आयुक्त, कार्यकारिणी समिति और बोर्ड के बजट स्वीकृत करने के अधिकार में कई गुना बढ़ोतरी का प्रस्ताव है। सरकार मेयर को भी 25 लाख तक के बजट की मंजूरी का अधिकार देने पर विचार कर रही है।
प्रस्ताव पर सरकार की अंतिम मुहर लगती है, तो नगर निगम बोर्डों को दस लाख की जगह एक करोड़ तक के बजट की मंजूरी का अधिकार मिल जाएगा। दरअसल, राज्य निर्माण के वक्त वर्ष 2000 में नगर आयुक्त, कार्यकारिणी समिति और बोर्ड के जो वित्तीय अधिकार थे, उनमें आज तक कोई बदलाव नहीं किया गया है।
इस दौरान उत्तर प्रदेश में इसी तरह की स्थिति में वित्तीय अधिकार काफी बढ़ चुके हैं। दून नगर निगम एक प्रस्ताव के माध्यम से सारी स्थिति को सरकार के सामने लाया है। शहरी विकास निदेशालय से होते हुए यह प्रस्ताव शासन में पहुंच चुका है। सरकार प्रस्ताव की तमाम सारी बातों से सैद्धांतिक तौर पर सहमत है।
राज्य बनने के बाद 18 सालों में निर्माण कार्यों की लागत और सामग्रियों के मूल्य में काफी बढ़ोतरी हुई है। इस अनुपात में वित्तीय अधिकार न बढ़ने से तेजी से विकास कार्य करने में नगर निगमों को दिक्कत पेश आ रही है। प्रस्ताव सामने रखने का सबसे मजबूत आधार ये ही बनाया गया है।
नगर निगम अधिनियम 1959 की धारा 135 और 136 के अंतर्गत नगर आयुक्त, महापौर, कार्यकारिणी समिति और बोर्ड को किसी कार्य या कार्यों के समूह के लिए अलग-अलग वित्तीय अधिकार दिए गए हैं। यूपी के जमाने का यह अधिनियम उत्तराखंड राज्य बनने के बाद 2000 से यहां भी लागू है; हालांकि 2000 के बाद यूपी ने समय-समय पर अपने यहां वित्तीय स्वीकृति के अधिकार में इजाफा किया है, मगर उत्तराखंड में स्थिति जस की तस है।