कामदार ईमानदार, नामदार चोर : सिद्धार्थ नाथ - Punjab Kesari
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कामदार ईमानदार, नामदार चोर : सिद्धार्थ नाथ

निर्णय आने पर कहा कि न्यायालय की अपनी प्रक्रिया होती है जिस पर प्रश्नचिन्ह लगाना उचित नहीं है।

राफेल मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय से केंद्र को क्लीन चिट मिलने के बावजूद कांग्रेस द्वारा केंद्र की मोदी सरकार को लगातार निशाना बनाए जाने पर उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने कहा, ‘‘ कामदार ईमानदार है और नामदार चोर।’’ स्वास्थ्यमंत्री ने सोमवार को संवाददाताओं से कहा,‘‘ झूठ के पैर नहीं होते और सच की हमेशा विजय होती है।’’

राफेल मामला उसका सबसे बडा उदाहरण है। उन्होंने कहा कि राफेल मामले को लेकर उच्चतम न्यायालय में कांग्रेस की तरफ से तीन प्रमुख बिन्दुओं 36 एयरक्राफ्ट सेलेक्ट किये गये, उसके फेयर प्राइसिंग और तीसरा आफसेट पाटर्नर के चयन को लेकर जनहित याचिका (पीआएस) दाखिल किया गया था, जिसे खारिज कर दिया गया। श्री सिंह ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से राफेल मामेल से जुड़ सात अलग-अलग सवालों के उत्तर मांगे हैं। पहला, क्या उन्हें इस बात की चिंता थी कि पांच साल पूरे होने जा रहे हैं और श्री मोदी के ऊपर कोई भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लग सका।

झूठी कहानी गढ़कर उन्हें बदनाम किया जाए। दूसरा 27 जून 2012 को जो 126 राफेल लेने थे जिसमें से 18 वहां से बनकर आते और शेष भारत में तैयार किये जाने थे, वह डील पूरी क्यों नहीं हुई। उसे री-एक्जामिन करने क्यों भेजा और बाद में ठन्डे बस्ते में क्यों ड़ल दिया गया। उन्होंने तीसरे सवाल का जवाब मांगा कि क्या आप लोगों (कांग्रेस) ने इस लिए यह निर्णय लिया कि किसी मिडिल मैन को जिसे आप चाहते थे उसका चयन नहीं हो पाया।

पांचवा अगर राफेल नहीं आता तो किस कम्पनीको लाभ मिलता तो लड़कू विमान बनाती है। दूसरी कम्पनी को जो लाभ मिलता उसके एजेंट से क्या लाभ मिलता। छठवा क्या आप को यह समझ नहीं आता कि उत्पादन और मैन्यूफैक्चरिंग अलग होते हैं और आफसेट और कान्ट्रैक्ट अलग होता या भ्रमित करने के लिए दोनो को एक मानते हैं।

टेन्डर प्रक्रिया और गर्वनमेंट टू गर्वनमेंट प्रक्रिया अलग होती हैं। उसका जो अन्तर होता है उसके बारे में कुछ जानकारी दे सकते हैं और सातवां कांग्रेस का जो डीएनए है झूठ पर झूठ बोलना और मनगढंत कहानी गढना है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि 1984 दंगा का परिणाम भले ही देर से आया लेकिन दुरूस्त आया। न्यायालय से इस मामले में देरी से निर्णय आने पर कहा कि न्यायालय की अपनी प्रक्रिया होती है जिस पर प्रश्नचिन्ह लगाना उचित नहीं है। वह अपने कामकाज अपने हिसाब से करती है।

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