भारतीय अदालतों में मुकदमों को समाप्त होने में अत्यधिक समय लगने का जिक्र करते हुए बम्बई उच्च न्यायालय ने कहा कि ऐसा लगता है कि अदालतों में ‘‘टाइम मशीन’’ हैं जहां मामले अनिश्चितकाल तक चलते रहते हैं। किराया नियंत्रण अधिनियम से संबंधित एक मामले में अदालत ने शुक्रवार को कहा कि यह मुकदमा 1986 में शुरू हुआ था।
इसके बाद कई अपील, आवेदन और याचिकाएं दायर हुईं लेकिन मामला फिर भी नहीं सुलझा, जबकि वास्तविक भू-स्वामी और किरायेदार अब जीवित नहीं रहे हैं। न्यायमूर्ति दामा एस नायडू ने कहा कि कई मामलों में दोनों पक्षों के वादियों की मृत्यु हो जाती है लेकिन मुकदमेबाजी बाद की पीढ़ियों द्वारा की जाती है।
मिशन 95% सफल, ऑर्बिटर 7 साल तक करेगा काम – ISRO
शहर निवासी रुक्मणीबाई द्वारा यह याचिका दायर की गई थी। याचिका में उसने अपनी संपत्ति से कुछ किरायेदारों को बाहर किये जाने का अनुरोध किया था। मामले के दौरान उसकी मौत हो गई और उसके वारिसों ने इस मामले को संभाल लिया।
किरायेदारों के खिलाफ 1986 में संपत्ति खाली कराये जाने की कार्रवाई शुरू की गई थी और निचली अदालत तथा उच्च न्यायालय ने संपत्ति मालिकों के पक्ष में फैसला दिया था। वर्ष 2016 में किरायेदारों ने बदली परिस्थितियों का हवाला देते हुए फिर से उच्च न्यायालय का रूख किया था।