तेलंगाना के रामप्पा मंदिर को विश्व धरोहर कर दर्जा प्रदान किए जाने के बाद देश की एक और धरोहर को सम्मान मिला है। यूनेस्को ने गुजरात के हड़प्पाकालीन शहर धोलावीरा को भी विश्व धरोहर की लिस्ट में शामिल किया है। यूनेस्को ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर इसकी जानकारी देते हुए बधाई दी। यूनेस्को की विश्व धरोहर कमिटी के 44वें सेशन में धोलावीरा को विश्व धरोहर साइट का टैग दिए जाने का फैसला लिया गया।
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Dholavira: A Harappan City, in #India🇮🇳, just inscribed on the @UNESCO #WorldHeritage List. Congratulations! 👏
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धोलावीरा से पहले यूनेस्को ने सोमवार को तेलंगाना के वारंगल जिले के समीप स्थित रामप्पा मंदिर के नाम से प्रसिद्ध ऐतिहासिक रुद्रेश्वर मंदिर को विश्व धरोहर कर दर्जा प्रदान किया। वारंगल से लगभग 60 किमी दूर स्थित रुद्रेश्वर मंदिर का निर्माण 1213 ईस्वी में काकतीय साम्राज्य के शासनकाल के दौरान काकतीय राजा गणपति देव के एक सेनापति रेचारला रुद्र ने कराया था।
धोलावीरा की खासियत
धोलावीरा गुजरात राज्य के कच्छ ज़िले की भचाउ तालुका में स्थित एक पुरातत्व स्थल है। इसका नाम यहां से एक किमी दक्षिण में स्थित ग्राम पर पड़ा है, जो राधनपुर से 165 किमी दूर स्थित है। धोलावीरा में सिन्धु घाटी सभ्यता के अवशेष और खंडहर मिलते हैं और यह उस सभ्यता के सबसे बड़े ज्ञात नगरों में से एक था।
भौगोलिक रूप से यह कच्छ के रण पर विस्तारित कच्छ मरुभूमि वन्य अभयारण्य के भीतर खादिरबेट द्वीप पर स्थित है। यह नगर 47 हेक्टर (120 एकड़) के चतुर्भुजीय क्षेत्रफल पर फैला हुआ था। बस्ती से उत्तर में मनसर जलधारा और दक्षिण में मनहर जलधारा है, जो दोनों वर्ष के कुछ महीनों में ही बहती हैं।
यहाँ पर आबादी लगभग 2650 ईसापूर्व में आरम्भ हुई और 2100 ईपू के बाद कम होने लगी। कुछ काल इसमें कोई नहीं रहा लेकिन फिर 1450 ईपू से फिर यहाँ लोग बस गए। नए अनुसंधान से संकेत मिलें हैं कि यहाँ अनुमान से भी पहले, 3500 ईपू से लोग बसना आरम्भ हो गए थे और फिर लगातार 1800 ईपू तक आबादी बनी रही। धोलावीरा पांच हजार साल पहले विश्व के सबसे व्यस्त महानगर में गिना जाता था था।