कोरोना महामारी के चलते जेलों में भीड़ कम करने लिए महाराष्ट्र सरकार ने करीब 50 प्रतिशत कैदियों को अस्थायी रूप से रिहा करने का फैसला किया है। महाराष्ट्र सरकार द्वारा नियुक्त एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति द्वारा यह फैसला लिया गया है। हालांकि कैदियों की रिहाई के लिए जेल अधिकारियों के समक्ष कोई समय-सीमा नहीं रखी है।
राज्य के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने मंगलवार को बताया कि महाराष्ट्र सरकार द्वारा नियुक्त एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति ने कोविड-19 महामारी के मद्देनजर राज्य की जेलों में भीड़ कम करने के उद्देश्य से करीब 50 प्रतिशत कैदियों को अस्थायी रूप से रिहा करने का फैसला किया है।
हालांकि इन कैदियों में भारतीय दंड संहिता के तहत गंभीर आरोपों में दोषी ठहराए गए और मकोका, गैर कानूनी गतिविधि (निरोधक) अधिनियम, धनशोधन (निरोधक) अधिनियम जैसे सख्त कानूनी प्रावधानों के तहत दोषियों को अस्थायी जमानत या पैरोल पर रिहा नहीं किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा मार्च महीने में कोरोना वायरस के मद्देनजर देश भर की जेलों में भीड़ कम किए जाने की बात कहे जाने के बाद इस समिति का गठन किया गया था। समिति में बॉम्बे हाई कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति ए ए सैयद, राज्य के गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव संजय चहांडे और महाराष्ट्र के महानिदेशक कारागार एस एन पांडेय शामिल थे।
मध्य मुंबई की आर्थर रोड जेल में 100 से ज्यादा कैदियों और कर्मचारियों के कोविड-19 संक्रमित पाए जाने के बाद समिति का यह फैसला आया है। समिति ने कहा कि जेल अधिकारी कैदियों की रिहाई से पहले तय कानूनी प्रक्रिया का पालन करें। समिति ने कहा कि जो कैदी उन अपराधों में दोषी ठहराए गए हैं या मुकदमे का सामना कर रहे हैं जिनके तहत सात साल तक कैद की सजा का प्रावधान है, वहीं कैदी अस्थायी जमानत या पैरोल पर रिहा किए जाने के लिए योग्य होंगे।