पर्यावरण मंत्रालय ने दी ग्रेटर निकोबार के लिए विशाल परियोजना को दी मंजूरी - Punjab Kesari
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पर्यावरण मंत्रालय ने दी ग्रेटर निकोबार के लिए विशाल परियोजना को दी मंजूरी

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति ने ग्रेटर निकोबार द्वीप में रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण, बहु उद्देश्यीय

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति ने ग्रेटर निकोबार द्वीप में रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण, बहु उद्देश्यीय मेगा परियोजना को विकसित करने की मंजूरी दे दी है। इसके तहत प्राचीन वर्षावन में करीब साढ़े आठ लाख वृक्षों को काटा जाएगा और करीब 12 से 20 हेक्टेयर मैंग्रोव (जलस्रोत के समीप उगे वनस्पति) का नुकसान होगा।
परियोजना के तहत हवाई सेवा से जुड़े संयंत्रों को किया जाएगा विकसित 
परियोजना के तहत एक सैन्य-असैन्य, दोहरे उपयोग वाला हवाई अड्डा विकसित किया जाएगा। इसी के साथ अंतरराष्ट्रीय कंटेनर ट्रांस-शिपमेंट टर्मिनल, एक गैस, डीज़ल और सौर आधारित ऊर्जा संयंत्र और रिहायशी कॉलोनी विकसित की जाएगी। विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (ईएसी) ने 22-23 अगस्त को हुई बैठक में परियोजना को पर्यावरण और तटीय नियामक क्षेत्र अनुमति देने की सिफारिश की थी।
हवाई को लेकर विचार विमर्श सावर्जनिक नहीं किया जा सकता हैं 
केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से 30 मार्च को पर्यावरण मंत्रालय को लिखे पत्र के मुताबिक, गांधी नगर-शास्त्री नगर क्षेत्र में प्रस्तावित हवाई अड्डा संयुक्त रूप से सैन्य-असैन्य, दोहरे उपयोग वाला होगा और इसका संचालन नौसेना करेगी। उसमें कहा गया है, “यह परियोजना रक्षा, रणनीतिक, राष्ट्रीय सुरक्षा और सार्वजनिक उद्देश्य के लिए है। इसके मद्देनजर, हवाई अड्डे को लेकर किए गए विचार विमर्श को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है।”
निकोबार भू – रणनीतिक लिहाज से काफी अहम
ग्रेटर निकोबार द्वीप (जीएनआई) भारतीय क्षेत्र के दक्षिण में है और यह रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण इलाकों में से एक है। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह भारत को बंगाल की खाड़ी में एक प्रभावशाली भू-रणनीतिक उपस्थिति और दक्षिण पूर्व एशिया तक पहुंच प्रदान करता है।
 कैंपबेल खाड़ी राष्ट्रीय उद्यान के 10 किलोमीटर के दायरे में
इस परियोजना से 1,761 लोगों के प्रभावित होंगे जिनमें मूल निवासी शोम्पेन और निकोबारी समुदाय भी शामिल है। द्वीप में लेदरबैक समुद्री कछुए, निकोबार मॅगापोड, निकोबार मैकाक और खारे पानी के मगरमच्छ समेत दुर्लभ वनस्पति और जीव पाए जाते हैं। परियोजना स्थल गैलाठेया खाड़ी राष्ट्रीय उद्यान और कैंपबेल खाड़ी राष्ट्रीय उद्यान के 10 किलोमीटर के दायरे में है, लेकिन दोनों राष्ट्रीय उद्यानों के पास अधिसूचित किए गए पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील इलाकों से बाहर है।
निकोबार मॅगापोड के 51 सक्रिय घोंसले में से लगभग 30 स्थायी रूप से नष्ट हो जाएंगे
भारतीय प्राणि सर्वेक्षण (जेडएसाई), भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) और सालिम अली पक्षी विज्ञान एवं प्राकृतिक इतिहास केंद्र (एसएसीओएन) ने जीएनआई के वनस्पतियों और जीवों पर परियोजना के प्रभाव पर ईएसी को वैज्ञानिक जानकारी प्रदान की है। ईएसी ने कहा कि यह स्पष्ट है कि प्रस्तावित परियोजना क्षेत्रों में निकोबार मॅगापोड के 51 सक्रिय घोंसले में से लगभग 30 स्थायी रूप से नष्ट हो जाएंगे। एसएसीओएन और डब्ल्यूआईआई ने इस संबंध में 10 वर्ष की शमन योजना दी है।
परियोजना के साथ पेड़ों को नहीं काटा जाए 
अंडमान और निकोबार (ए एंड एन) प्रशासन के पर्यावरण और वन विभाग ने मैंग्रोव संरक्षण और प्रबंधन योजना तैयार की है।ईएसी ने प्रदूषण से संबंधित मामलों, जैव विविधता और शोम्पेन और निकोबारी जनजातियों से संबंधित मुद्दों की निगरानी के लिए तीन स्वतंत्र समितियों के गठन का भी निर्देश दिया है। उसने कहा है कि परियोजना के लिए एक साथ पेड़ों को नहीं काटा जाए बल्कि चरणबद्ध तरीके से वृक्षों की कटाई की जाए और यह वार्षिक आधार पर काम की प्रगति पर निर्भर करे।
छह माह में विशेष चिकित्सा ईकाई स्थापित करने का निर्देश दिया 
अंडमान और निकोबार प्रशासन को देश और विदेश से बड़ी संख्या में लोगों के पहुंचने के कारण बीमारियों की निगरानी के लिए छह महीने में जीएनआई में विशेष चिकित्सा इकाई स्थापित करने का निर्देश दिया गया है जिसमें अत्याधुनिक बुनियादी ढांचे हो व योग्य चिकित्सा कर्मचारी हों। ईएसी ने कहा कि यह सुनिश्चित किया जाए कि शोम्पेन और निकोबारी के लोगों का बीमारियों से संपर्क न हो।
 

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