अंग्रेज़ों ने देश में अंग्रेज़ी थोपी,हम आज तक नहीं उबरे : राज्यपाल - Punjab Kesari
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अंग्रेज़ों ने देश में अंग्रेज़ी थोपी,हम आज तक नहीं उबरे : राज्यपाल

डा. शंकर प्रसाद तथा डा शांति जैन ने संयुक्त रूप से किया। आरंभ में मंगलाचरण का गायन सम्मेलन

पटना : अंग्रेजों ने भारतमें अंग्रेज़ी थोपी। इससे भारत की भाषाओं की बड़ी क्षति हुई। हमारी संस्कृति और संस्कार पर गहरा दुष्प्रभाव पड़ा। अंग्रेज़ चले गए, पर हम आज तक अंग्रेज़ी से नहीं उबरे। हिन्दी एक सरस और मधुर भाषा है। हिन्दी अपने गुणों के कारण पूरे विश्व में विस्तृत हो रही है।

यह बातें आज यहाँ, विश्व हिंदी दिवस पर, बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में आयोजित समारोह का उद्घाटन करते हुए, हरियाणा के राज्यपाल सत्यदेव नारायण आर्य ने कही। श्री आर्य ने कहा कि, विश्व में हिन्दी की तेज़ी से हो रही उन्नति में हिन्दी के महान साहित्यसेवियों और हिन्दी के प्रति प्रेम रखनेवाले भारतीयों का बड़ा योगदान है। उन्होंने कहा कि,पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्र में, भारत के प्रधान मंत्री के रूप में,प्रथम बार हिन्दी में अपना व्याख्यान दिया था। इससे निखिल विश्व में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ी। वर्ष २०१४ में भारत के वर्तमान प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने भी हिन्दी में व्याख्यान देकर उस परंपरा को आगे बढ़ाया।

श्री आर्य ने कहा कि,भारत में हिन्दी बोलने बालों और समझने वालों की संख्या बहुत अधिक है। फिरभी लोग अंग्रेज़ी में बातें करना अधिक गौरव पूर्ण माना जाता है। इससे हिन्दी और हमारी संस्कृत का बड़ा ह्रास हुआ है। श्री आर्य ने कहा कि, पूरे देश में हिन्दी को बधाबा देने का ख़ूब प्रयास हो रहा है। हमें मिलकर इसे बल देना चाहिए। हमें भाषा और शिक्षा को बढ़ावा देना चाहिए। बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर शिक्षा पर बहुत बल देते थे। प्रत्येक व्यक्ति को यह संकल्प लेना चाहिए कि,वह अपने जीवन में कम से कम पाँच व्यक्तियों को शिक्षित करेगा। उन्होंने साहित्य सम्मेलन के गौरवशाली इतिहास का स्मरण किया तथा बिहार के महान हिन्दी-सेवियों देश-रत्न डा राजेंद्र प्रसाद, आचार्य शिवपूजन सहाय, राहुल सांकृत्यायन, आचार्य रामवृक्ष बेनीपुरी, राजा राधिका रमण सिंह, महाकवि केदारनाथ मिश्र ‘प्रभात’,मोहन लाल महतो ‘वियोगी’,राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ को श्रद्धांजलि दी।

इसके पूर्व सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने श्री आर्य का,सम्मेलन की सर्वोच्च मानद-उपाधि ‘विद्या वाचस्पति’ देकर अभिनंदन किया। शिक्षाविद आचार्य श्री सुदर्शन जी को दूसरी उच्च उपाधि ‘विद्या-वारिधि’देकर सम्मानित किया गया।

विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित आचार्य श्री सुदर्शन ने कहा कि, नई पीढ़ी आज हताश और निराश है। उसमें तनाव दिखाई देता है। नई पीढ़ी को कुंठा से साहित्य हीं बचा सकता है। बच्चों शिक्षा और साहित्य का ऐसा बीज डाला जाना चाहिए,जिससे कि वे सुगंधित फूल बनाकर उभरें।

इस अवसर पर उपस्थित भारतीय रिज़र्व बैंक (बिहार-झाखंड)के निदेशक नेलन प्रकाश तोपनो ने कहा कि, हिन्दी का प्रचार और प्रसार पूरे विश्व में हो रहा है, यह ठीक है किंतु इससे भी पहले आवश्यक यह है कि, हम रोज़मर्रा की ज़िंदगी में हिन्दी का अधिकाधिक प्रयोग किया जाए। भारत के राष्ट्रीयकृत बैंकों में इसके व्यापक प्रयोग को रिज़र्व बैंक ने सुदृढ़ किया है।

समारोह की अध्यक्षता करते हुए,सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि, विश्व हिन्दी दिवस पर, जो नागपुर में हुए प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन की स्मृति में, भारत सरकार द्वारा वर्ष २००६ से मनाया जाता है, हम इस बात पर अवश्य परितोष व्यक्त करते हैं कि, ‘हिन्दी’संपूर्ण विश्व में अपने गुणों के कारण तेज़ी से विस्तार पा रही है, किंतु यह दिवस हमें यह भी स्मरण दिलाता है कि, अपनी हीं भूमि में उसे वह स्थान अब तक नहीं प्राप्त हुआ, जिसे देने का निर्णय भारत की संविधान सभा ने लिया था। आज भी हिन्दी भारत की राजकाज की भाषा नहीं हो पाई है। जब दुनिया के लोग हमसे पूछते हैं कि, भारतवासियों! बताओ तेरी सरकार की भाषा कौन है? तो हम निरुत्तर हो जाते हैं। हम लज्जा से यह भी नहीं कह पाते कि, स्वतंत्रता के ७१ वर्षों के बाद भी हमारे देश की सरकारी भाषा ‘अंग्रेज़ी’है। यह संपूर्ण भारतवर्ष के नागरिकों के लिए वैश्विक लज्जा का विषय है कि, भारत की सरकार की भाषा, अपने देश की कोई भाषा नहीं, एक विदेशी भाषा है।

डा सुलभ ने कहा कि, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन अपनी स्थापना के इस शती-वर्ष में, संपूर्ण भारत वर्ष में यह अभियान चलाकर जनता और सरकार से अपील करेगा कि,सबके सब एक स्वर में कहें कि, भारत की महान जनता की हीं नहीं, भारत की सरकार की भाषा भी ‘हिन्दी’होगी, कोई विदेशी भाषा नहीं। साहित्य सम्मेलन ने देश के सभी प्रांतों के महामहिम राज्यपाल और मुख्यमंत्रियों से, पत्र लिख कर आग्रह किया है कि,वे भारत सरकार को इस आशय का पत्र लिखें कि, उनका प्रदेश चाहता है कि, भारत की राजकीय भाषा ‘हिन्दी’बनाई जाए।

इस अवसर पर, राज्यपाल श्री आर्य ने बिहार के बीस विदुषियों और विद्वानों को सम्मानित किया, जिनमें वरिष्ठ हिन्दी-सेवी डा बजरंग वर्मा, डा मृदुला झा, डा वंशीधर लाल, डा नन्दजी दूबे,इम्तियाज़ अहमद करीमी,डा रत्ना पुरकायस्था,विजय प्रकाश (भा प्र से), बाबूलाल मधुकर, डा रमण शांडिल्य, ब्रजेंद्र कुमार सिन्हा, आचार्य पाँचु राम, मोहन कुमार सरकार, उदय शंकर शर्मा ‘कविजी’,डा विजय प्रकाश, डा अरुण कुमार मिश्र, डा अचल भारती, डा प्रणव पराग, प्रवीण कुमार मिश्र ‘कविजी’,पंकज बसन्त तथा आनंद किशोर मिश्र के नाम सम्मिलित हैं।

इसके पूर्व महामहिम ने साहित्य सम्मेलन द्वारा प्रकाशित,अपने समय के सुख्यात कवि डा ब्रजनाथ के मुक्तकों का संग्रह ‘तड़पती ये सतरें’ तथा प्रो उषा सिंह की पुस्तक ‘बिहार के कहानीकार’ का लोकार्पण भी किया। अतिथियों का स्वागत सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन साहित्य मंत्री डा भूपेन्द्र कलसी ने किया। मंच का संचालन सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा. शंकर प्रसाद तथा डा शांति जैन ने संयुक्त रूप से किया। आरंभ में मंगलाचरण का गायन सम्मेलन की कलामंत्री पल्लवी विश्वास द्वारा किया किया।

इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार,मेजर बलबीर सिंह ‘भसीन’,सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा कल्याणी कुसुम सिंह,योगेन्द्र प्रसाद मिश्र, बीरेन्द्र कुमार यादव, आचार्य आनंद किशोर शास्त्री, पूनम आनंद, सागरिका राय,राज कुमार प्रेमी,अनुपमा नाथ, पूजा ऋतुराज, चंदा मिश्र,कुमार अनुपम, सुनील कुमार दूबे, एस पी सिंह, अमियानाथ चटर्जी, आराधना प्रसादसिंधु कुमारीपूनम सिन्हा श्रेयसीश्रीकांत सत्यदर्शीशशि भूषण कुमार तथा डा नागेशवर प्रसाद यादव समेत बिहार के तीन सौ से अधिक साहित्यकार एवं प्रबुद्धजन उपस्थित थे।

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