उत्तराखंड के वनों, वन्यजीवों और पक्षियों को जंगल की आग से बचाने के लिये तत्काल उचित कदम उठाने की खातिर उच्चतम न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की गयी है। याचिका में कहा गया है कि राज्य के जंगलों में आग लगने की घटनायें लगातार बढ़ रही हैं और इससे पर्यावरण को बहुत अधिक नुकसान हो रहा है।
अधिवक्ता ऋतुपर्ण उनियाल ने यह जनहित याचिका दायर की है। इसमें केन्द्र, उत्तराखंड सरकार और राज्य में प्रधान मुख्य वन संरक्षक को जंगलों में आग की रोकथाम के लिये नीति तैयार करने और आग लगने से पहले ही इससे निपटने की व्यवस्था करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।
याचिका में कहा गया है कि उत्तराखंड के जंगलों में आग लगना एक नियमित घटना हो गया है। हर साल राज्य के जंगलों में आग लगने से वनों का पारिस्थितिकी तंत्र, वनस्पति की विविधता और आर्थिक संपदा को बहुत अधिक नुकसान होता है। उत्तराखंड के जंगलों के नष्ट होने का एक बड़ा कारण दावानल है।
याचिका में कहा गया है कि लगातार जंगलों में आग लगने के इतिहास के बावजूद केन्द्र और राज्य सरकार तथा वन संरक्षक द्वारा लापरवाही, ढुलमुल रवैया और स्थिति से निबटने के लिये तैयार नहीं रहने की वजह से वनों, वन्यजीवों और पक्षियों की बहुत अधिक हानि हो रही है जिससे पारिस्थितिकी असंतुलन पैदा हो रहा है।
याचिका में दावा किया गया है कि एक प्रमुख वन अनुसंधान संस्थान उत्तराखंड में है। इसके बावजूद प्राधिकारियों ने जंगल की आग की समस्या से निबटने के लिये इस संस्थान से परामर्श नहीं किया है। याचिका के अनुसार घास के मैदानों के आग में नष्ट होने और इसकी वजह से मवेशियों के लिये चारे की कमी इस क्षेत्र में चिंता का एक और मुद्दा है जिसे लेकर स्थानीय निवासी और ग्रामीण परेशान है। इसके अलावा, जंगल की आग की वजह से पर्यटन से होने वाली आमदनी में भी कमी आ रही है।