असम के कांग्रेस विधायक नुरुल हुडा ने बृहस्पतिवार को राज्य सरकार के तीन दिवसीय अतिक्रमण विरोधी अभियान को आखिरी दिन कुछ समय के लिए रोकने की कोशिश की। इस अभियान में सरकार ने सोनितपुर जिले की करीब 1900 हेक्टेयर वन एवं नजूल की जमीन मुक्त कराई है।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि रुपोहिहाट से विधायक हुडा ने बुढाचापोड़ी वन्य जीवन अभयारण्य के सीतलमारी इलाके में ‘कार्रवाई को अवैध’ बताकर कुछ समय के लिए रोक दिया, लेकिन बाद में दोबारा कार्रवाई शुरू की गई।
एआईयूडीएफ ने कहा कि सरकार को जमीन खाली करने के अभियान भूमिहीन लोगों के लिए वैकल्पिक व्यवस्था कर शुरू करना चाहिए था और इस तरह का अभियान सर्दियों में नहीं करना चाहिए था।
हुडा ने संवाददाताओं से कहा कि सीतलमारी इलाके में भूमि खाली कराने का अभियान सोनितपुर जिला प्रशासन द्वारा ‘गैर कानूनी’ तरीके से किया जा रहा है क्योंकि उक्त इलाका नगांव जिले के अंतर्गत आता है और घरों को ध्वस्त करने के दौरान मजिस्ट्रेट भी मौजूद नहीं था।
कांग्रेस नेता ने कहा कि वह इलाके में कोई अशांति नहीं पैदा करना चाहते हैं, इसलिए अकेले सीतलमारी इलाके में गए थे। उन्होंने दावा किया कि उक्त इलाके में रह रहे लोग वर्ष 1963 से ही राज्य सरकार को भूमि कर दे रहे हैं।
हुडा ने कहा, ‘‘मैंने मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा को सोनितपुर प्रशासन द्वारा किए जा रहे गैर कानूनी कार्य की जानकारी दी है और उम्मीद है कि वह उचित कदम उठाएंगे।’’
कांग्रेस ने इससे पहले दावा किया था कि कई प्रभावित परिवार वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत भूमि पर अधिकार की अर्हता रखते हैं।
अधिकारी ने बताया कि बुढाचापोड़ी वन्य जीवन अभयारण्य के सियाली सेक्शन के तहत आने वाले सीतलमारी इलाके के तीन गांवों में भूमि पर से अवैध कब्जा हटाने का अभियान चलाया गया। उन्होंने बताया कि मंगलवार को भारी सशस्त्र सुरक्षा कर्मियों की मौजूदगी में अभियान की शुरुआत की ताकी मध्य असम में ब्रह्मपुत्र नदी के दक्षिणी किनारे पर वन्य जीव अभयारण्य और नजदीकी गांवों के राजस्व भूमि पर से अवैध कब्जे को हटाया जा सके।
एआईयूडीएफ प्रमुख बदरुद्दीन अजमल ने बृहस्पतिवार को कहा कि केंद्र और राज्य सरकार ने कई बार कहा कि वे जमीन पर अवैध कब्ज हटाने के लिए कदम उठा सकते हैं लेकिन साथ ही भूमिहीनों के लिए वैकल्पिक व्यवस्था भी जानी चाहिए।
सोनितपुर के उपायुक्त देब कुमार मिश्रा ने इससे पहले कहा कि हजारों लोगों ने वन और नजदीकी जमीन पर दशकों से कब्जा कर रखा था और प्रशासन ने 1,892 हेक्टेयर जमीन अभियान चलाकर मुक्त कराने का फैसला किया।
उन्होंने बताया, ‘‘इनमें से 1,401 हेक्टेयर जमीन अभयारण्य की है जबकि बाकी बची 491 हेक्टेयर जमीन सरकार की है। वन भूमि पर 1,758 परिवार रहते थे जिनमें कुल 6,965 लोग हैं। वहीं, सरकारी जमीन पर 755 परिवारों के 4,645 लोग रहते थे।’’