रांची : उरीमारी, बड़कागांव में वीर शहीद सिदो-कान्हू की प्रतिमा के अनावरण के अवसर पर राज्यपाल द्रोपदी मूर्मू ने कहा कि आज वीर शहीद सिदो-कान्हू की प्रतिमा के अनावरण के शुभ अवसर पर आप सभी के बीच सम्मिलित होकर स्वयं को सौभाग्यशाली महसूस कर रही हूं।
राज्यपा ने कहा कि मैं इस अवसर पर संथाल हूल के अमर महानायकों सिदो-कान्हु, चांद भैरव समेत अन्य सभी अमर शहीदों और उनके हजारों सहयोगियों के प्रति अपनी श्रद्धा-सुमन अर्पित करती हूं। उन्होंने कहा कि वैसे तो स्वाधीनता संग्राम की पहली लड़ाई 1857 में मानी जाती है, लेकिन इसके पहले ही वर्तमान के झारखंड राज्य के संथाल परगना में ‘संथाल हूल’ और ‘संथाल विद्रोह’ के द्वारा अंग्रेजों को भारी क्षति उठानी पड़ी थी।
सिद्धो-कान्हू दो भाइयों के नेतृत्व में 30 जून 1855 को वर्तमान साहेबगंज जिले के भोगनाडीह गांव से प्रारंभ हुए इस विद्रोह के मौके पर सिद्धू ने घोषणा की थी-‘करो या मरो’ ‘अंग्रेजो हमारी माटी छोड़ो’। राज्यपाल ने बताया कि इतिहासकारों के मुताबिक, संथाल परगना के लोग प्रारंभ से ही प्रकृति के प्रेमी और सरल होते थे।
इसका जमींदारों और बाद में अंग्रेजों ने इसका खूब लाभ उठाया। इतिहासकारों का कहना है कि इस क्षेत्र में अंग्रेजों ने राजस्व के लिए संथाल, पहाड़ियों तथा अन्य निवासियों पर मालगुजारी लगा दी। इसके बाद न केवल यहां के लोगों का शोषण होने लगा, बल्कि उन्हें मालगुजारी भी देनी पड़ रही थी।
इस कारण यहां के लोगों में विद्रोह पनप रहा था। यह विद्रोह भले ही ‘संथाल हूल’ हो परंतु संथाल परगना के समस्त गरीबों और शोषितों द्वारा शोषकों, अंग्रेजों एवं उसके कर्मचारियों के विरुद्ध स्वतंत्रता आंदोलन था। इस जन-आंदोलन के नायक सिद्धो, कान्हू, चांद और भैरव थे।
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