लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा दिए जाने वाले प्रस्ताव पर कर्नाटक सरकार की मंजूरी के बाद अब कोडवा समुदाय भी अपने लिए अल्पसंख्यक दर्जा देने की मांग कर रहा है। बुधवार को राज्य सरकार के अल्पसंख्यक विभाग को कोडावा समुदाय की तरफ से एमएम बंसी और विजय मुथप्पा ने ज्ञापन सौंपा है। लेकिन जानकार बताते हैं कि कोडवा समुदाय हिंदू धर्म के हिस्सा हैं। वो हिंदू विधि विधान को मानते हैं। ये समझ के परे है इस तरह की मांग क्यों उठायी जा रही है।
कोडवा नेशनल काउंसिल के एन यू नचप्पा का कहना है कि केंद्र सरकार को इस मामले में सीधे दखल देने की आवश्यकता है। भारत सरकार को कोडवा अल्पसंख्यक समाज के हितों की रक्षा करनी चाहिए। हम लोग अलग से धार्मिक दर्जा देने की मांग नहीं कर रहे हैं। कोडवा समुदाय दक्षिण कर्नाटक के कूर्ग जिले की एक लड़ाकू जनजाति है। उनकी कुल जनसंख्या करीब 1.5 लाख है और वे कोडवा थाक भाषा में बात करते हैं। इस भाषा की खासियत ये है कि इसकी कोई लिपि नहीं है।
इस समुदाय का कहना है कि वे प्रकृति की पूजा करते हैं और हिन्दू धर्म की परंपराओं का पालन नहीं करते हैं। उनके किसी भी अनुष्ठान में ब्राह्मण पंडित शामिल नहीं होते हैं और उनकी सभी धार्मिक पुस्तक उनकी अपनी भाषा में है। ‘बता दें कि आने वाले कर्नाटक विधानसभा चुनाव को लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा देनें की मांग जोर-शोर से उठने लगी है। इसे लेकर राज्य में अलग-अलग जगहों पर भारी विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। बीजेपी ने इस फैसले का विरोध करते हुए वोटों के लिए बंटवारे का आरोप लगाया है।
वहीं शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने केदारनाथ मंदिर से लिंगायत पुजारियों को हटाए जाने की बात कही है। राज्य में लिंगायत समुदाय की आबादी करीब 17 फीसदी है. राज्य की 56 विधानसभा सीटों पर लिंगायत का असर माना जाता है। इसके साथ ही पड़ोसी राज्यों महाराष्ट्र, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी लिंगायतों की अच्छी ख़ासी आबादी है। कर्नाटक में लिंगायत को बीजेपी का बड़ा वोट बैंक माना जाता है। बीजेपी के सीएम कैंडिडेट येदियुरप्पा भी लिंगायत समुदाय के हैं। 2008 में बीजेपी की जीत में लिंगायत समुदाय का बड़ा योगदान था। लिंगायत वोट के दम पर ही दक्षिण भारत में बीजेपी की पहली सरकार बनी।
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