अगर कुछ होश हम रखते तो मस्ताने हुए होते
पहुंचते जा लब-ए-साक़ी कूं पैमाने हुए होते
अबस इन शहरियों में वक़्त अपना हम किए ज़ाए
किसी मजनूं की सोहबत बैठ दीवाने हुए होते
न रखता मैं यहां गर उल्फ़त-ए-लैला निगाहों कूं
तो मजनूं की तरह आलम में अफ़्साने हुए होते
अगर हम आश्ना होते तिरी बेगाना-ख़ूई सीं
बरा-ए-मस्लहत ज़ाहिर में बेगाने हुए होते
ज़ि-बस काफ़िर-अदायों ने चलाए संग-ए-बे-रहमी
अगर सब जम्अ करता मैं तो बुत-ख़ाने हुए होते
न करता ज़ब्त अगर मैं गिर्या-ए-बे-इख़्तियारी कूं
गुज़रता जिस तरफ़ ये पूर वीराने हुए होते
नज़र चश्म-ए-ख़रीदारी सीं करता दिलबर-ए-नादां
अगर क़तरे मिरे आंसू के दुरदाने हुए होते
मोहब्बत के नशे में ख़ास इंसान वास्ते वर्ना
फ़रिश्ते ये शराबें पी कि मस्ताने हुए होते