उसकी याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो,
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है
दोस्ती जब किसी से की जाए,
दुश्मनों की भी राय ली जाए
शाख़ों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हम,
आँधी से कोई कह दे कि औक़ात में रहे
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो,
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो
घर के बाहर ढूँढता रहता हूँ दुनिया,
घर के अंदर दुनिया-दारी रहती है
मैं आख़िर कौन सा मौसम तुम्हारे नाम कर देता,
यहाँ हर एक मौसम को गुज़र जाने की जल्दी थी
तेरी महफ़िल से जो निकला तो ये मंज़र देखा,
मुझे लोगों ने बुलाया मुझे छू कर देखा
अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है,
उम्र गुज़री है तिरे शहर में आते जाते
मज़ा चखा के ही माना हूँ मैं भी दुनिया को,
समझ रही थी कि ऐसे ही छोड़ दूँगा उसे