“अब उस की दीद मोहब्बत…” पढ़िए Zafar Iqbal के चुनिंदा शेर - Punjab Kesari
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“अब उस की दीद मोहब्बत…” पढ़िए Zafar Iqbal के चुनिंदा शेर

यहाँ किसी को भी कुछ हस्ब-ए-आरज़ू न मिला,
किसी को हम न मिले और हम को तू

रास्ते हैं खुले हुए सारे,

फिर भी ये ज़िंदगी रुकी हुई है

 यहाँ किसी को भी कुछ हस्ब-ए-आरज़ू न मिला,
किसी को हम न मिले और हम को तू न मिला

झूट बोला है तो क़ाएम भी रहो उस पर ‘ज़फ़र’.
आदमी को साहब-ए-किरदार होना चाहिए

कैसा है कौन ये तो नज़र आ सके कहीं,
पर्दा ये दरमियाँ से हटा लेना चाहिए

कहाँ तक हो सका कार-ए-मोहब्बत क्या बताएँ,
तुम्हारे सामने है काम जितना हो रहा है

थकना भी लाज़मी था कुछ काम करते करते,
कुछ और थक गया हूँ आराम करते करते

मैं ज़ियादा हूँ बहुत उस के लिए अब तक भी,
और मेरे लिए वो सारे का सारा कम है

अब उस की दीद मोहब्बत नहीं ज़रूरत है,
कि उस से मिल के बिछड़ने की आरज़ू है बहुत

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 तुम अपनी मस्ती में आन टकराए मुझ से यक-दम,
इधर से मैं भी तो बे-ध्यानी में जा रहा था

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