कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता,
कहीं ज़मीन कहींआसमाँ नहीं मिलता
धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो,
ज़िंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो
बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो,
चार किताबें पढ़ कर ये भी हम जैसे हो जाएँगे
हम लबों से कह न पाए उन से हाल-ए-दिल कभी,
और वो समझे नहीं ये ख़ामुशी क्या चीज़ है
दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है,
मिल जाए तो मिट्टी है खो जाए तो सोना है
बे-नाम सा ये दर्द ठहर क्यूँ नहीं जाता,
जो बीत गया है वो गुज़र क्यूँ नहीं जाता
सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो,
सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो
सब कुछ तो है क्या ढूँडती रहती हैं निगाहें,
क्या बात है मैं वक़्त पे घर क्यूँ नहीं जाता
इतना सच बोल कि होंटों का तबस्सुम न बुझे,
रौशनी ख़त्म न कर आगे अँधेरा होगा