ऐ आवारा यादो फिर ये फ़ुर्सत के लम्हात कहां
हम ने तो सहरा में बसर की तुम ने गुज़ारी रात कहां
दिलों की राह पर आख़िर ग़ुबार सा क्यूं है
थका थका मिरी मंज़िल का रास्ता क्यूं है
हम क्या जानें क़िस्सा क्या है हम ठहरे दीवाने लोग
उस बस्ती के बाज़ारों में रोज़ कहें अफ़साने लोग
यादों से बचना मुश्किल है उन को कैसे समझाएं
हिज्र के इस सहरा तक हम को आते हैं समझाने लोग
हम तो हैं परदेस में देस में निकला होगा चांद
अपनी रात की छत पर कितना तन्हा होगा चांद
इस सफ़र में नींद ऐसी खो गई
हम न सोए रात थक कर सो गई
जिन से हम छूट गए अब वो जहां कैसे हैं
शाख़-ए-गुल कैसी है ख़ुश्बू के मकान कैसे हैं
कहीं शबनम के शगूफ़े कहीं अंगारों के फूल
आ के देखो मिरी यादों के जहां कैसे हैं
रास्ते अपनी नज़र बदला किए
हम तुम्हारा रास्ता देखा किए
हाए-रे वहशत कि तेरे शहर का
हम सबा से रास्ता पूछा किए