आख़री हिचकी तेरे ज़ानू पे आए
मौत भी मैं शाइराना चाहता हूं
अपने लिए अब एक ही राह नजात है
हर ज़ुल्म को रज़ा-ए-ख़ुदा कह लिया करो
क्या जाने किस अदा से लिया तू ने मेरा नाम
दुनिया समझ रही है कि सचमुच तेरा हूं मैं
चलो अच्छा हुआ काम आ गई दीवानगी अपनी
वगरना हम ज़माने भर को समझाने कहां जाते
जीत ले जाए कोई मुझ को नसीबों वाला
ज़िंदगी ने मुझे दांव पे लगा रक्खा है
मैं अपने दिल से निकालूं ख़याल किस किस का
जो तू नहीं तो कोई और याद आए मुझे
यूं तसल्ली दे रहे हैं हम दिल-ए-बीमार को
जिस तरह थामे कोई गिरती हुई दीवार को
यूं बरसती हैं तसव्वुर में पुरानी यादें
जैसे बरसात की रिम-झिम में समां होता है
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