Parveen Shakir Poetry: “जाते जाते उसका वो मुड़ कर दोबारा देखना…” पढ़ें परवीन शाकिर के चुनिंदा शेर - Punjab Kesari
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Parveen Shakir Poetry: “जाते जाते उसका वो मुड़ कर दोबारा देखना…” पढ़ें परवीन शाकिर के चुनिंदा शेर

Parveen Shakir Poetry: क्या करे मेरी मसीहाई भी करने वाला
ज़ख़्म ही ये मुझे लगता नहीं भरने

चलने का हौसला नहीं रुकना मुहाल कर दिया

इश्क़ के इस सफ़र ने तो मुझ को निढाल कर दिया

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क्या करे मेरी मसीहाई भी करने वाला

ज़ख़्म ही ये मुझे लगता नहीं भरने वाला

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अब तो इस राह से वो शख़्स गुज़रता भी नहीं

अब किस उम्मीद पे दरवाज़े से झाँके कोई

अब तो इस राह से वो शख़्स गुज़रता भी नहीं

अब किस उम्मीद पे दरवाज़े से झाँके कोई

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वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा

मसअला फूल का है फूल किधर जाएगा

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पास जब तक वो रहे दर्द थमा रहता है

फैलता जाता है फिर आँख के काजल की तरह

कैसे कह दूँ कि मुझे छोड़ दिया है उस ने

बात तो सच है मगर बात है रुस्वाई की

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बस ये हुआ कि उस ने तकल्लुफ़ से बात की

और हम ने रोते रोते दुपट्टे भिगो लिए

हम तो समझे थे कि इक ज़ख़्म है भर जाएगा

क्या ख़बर थी कि रग-ए-जाँ में उतर जाएगा

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