बरसात का बादल तो दीवाना है क्या जाने
किस राह से बचना है किस छत को भिगोना है
पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है
अपने ही घर में किसी दूसरे घर के हम हैं
ये शहर है कि नुमाइश लगी हुई है कोई
जो आदमी भी मिला बन के इश्तिहार मिला
Shakeel Azmi Poetry: शकील आज़मी के खजाने से 7 खूबसूरत शेर
वो एक ही चेहरा तो नहीं सारे जहां में
जो दूर है वो दिल से उतर क्यूं नहीं जाता
दिल में न हो जुरअत तो मोहब्बत नहीं मिलती
ख़ैरात में इतनी बड़ी दौलत नहीं मिलती
मिरी तलाश तिरी दिलकशी रहे बाक़ी
ख़ुदा करे कि ये दीवानगी रहे बाक़ी
तू इस तरह से मिरी ज़िंदगी में शामिल है
जहां भी जाऊं ये लगता है तेरी महफ़िल है
धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो
ज़िंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो
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