Momin Khan Mohin Poetry: मोमिन ख़ाँ मोमिन के बेमिसाल शेर - Punjab Kesari
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Momin Khan Mohin Poetry: मोमिन ख़ाँ मोमिन के बेमिसाल शेर

Momin Khan Mohin Poetry: ग़ैरों पे खुल न जाए कहीं राज़ देखना, मेरी तरफ़ भी…

ग़ैरों पे खुल न जाए कहीं राज़ देखना

मेरी तरफ़ भी ग़म्ज़ा-ए-ग़म्माज़ देखना

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उस नक़्श-ए-पा के सज्दे ने क्या क्या किया ज़लील

मैं कूचा-ए-रक़ीब में भी सर के बल गया

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माँगा करेंगे अब से दुआ हिज्र-ए-यार की

आख़िर तो दुश्मनी है असर को दुआ के साथ

मज्लिस में मिरे ज़िक्र के आते ही उठे वो

बदनामी-ए-उश्शाक़ का एज़ाज़ तो देखो

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कर इलाज-ए-जोश-ए-वहशत चारागर

ला दे इक जंगल मुझे बाज़ार से

हो गया राज़-ए-इश्क़ बे-पर्दा

उस ने पर्दे से जो निकाला मुँह

इतनी कुदूरत अश्क में हैराँ हूँ क्या कहूँ

दरिया में है सराब कि दरिया सराब में

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किसी का हुआ आज कल था किसी का

न है तू किसी का न होगा किसी का

दाग़ दुनिया ने दिए ज़ख़्म ज़माने से मिले 
हम को तोहफ़े ये तुम्हें दोस्त बनाने से मिले

vada sambhar 3बच्चों के लिए बनाएं वड़ा सांभर

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