Majrooh Sultanpuri Poetry: मजरूह सुल्तानपुरी की कलम से 8 चुनिंदा शेर - Punjab Kesari
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Majrooh Sultanpuri Poetry: मजरूह सुल्तानपुरी की कलम से 8 चुनिंदा शेर

Majrooh Sultanpuri Poetry: मजरूह सुल्तानपुरी के 8 बेहतरीन शेर जो दिल को छू लेंगे…

मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर
लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया

ऐसे हंस हंस के न देखा करो सब की जानिब
लोग ऐसी ही अदाओं पे फ़िदा होते हैं

कोई हम-दम न रहा कोई सहारा न रहा
हम किसी के न रहे कोई हमारा न रहा

देख ज़िंदां से परे रंग-ए-चमन जोश-ए-बहार
रक़्स करना है तो फिर पांव की ज़ंजीर न देख

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शब-ए-इंतिज़ार की कश्मकश में न पूछ कैसे सहर हुई
कभी इक चराग़ जला दिया कभी इक चराग़ बुझा दिया

जफ़ा के ज़िक्र पे तुम क्यूं संभल के बैठ गए
तुम्हारी बात नहीं बात है ज़माने की

ग़म-ए-हयात ने आवारा कर दिया वर्ना
थी आरज़ू कि तिरे दर पे सुब्ह ओ शाम करें

बहाने और भी होते जो ज़िंदगी के लिए
हम एक बार तिरी आरज़ू भी खो देते

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