Majrooh Sultanpuri Poetry: मजरूह सुल्तानपुरी की कलम से 8 चुनिंदा शेर - Punjab Kesari
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Majrooh Sultanpuri Poetry: मजरूह सुल्तानपुरी की कलम से 8 चुनिंदा शेर

Majrooh Sultanpuri Poetry: मजरूह सुल्तानपुरी के दिल को छू लेने वाले 8 शेर…

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अब सोचते हैं लाएंगे तुझ सा कहां से हम
उठने को उठ तो आए तिरे आस्तां से हम

बढ़ाई मय जो मोहब्बत से आज साक़ी ने
ये कांपे हाथ कि साग़र भी हम उठा न सके

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देख ज़िंदां से परे रंग-ए-चमन जोश-ए-बहार
रक़्स करना है तो फिर पांव की ज़ंजीर न देख

दिल की तमन्ना थी मस्ती में मंज़िल से भी दूर निकलते
अपना भी कोई साथी होता हम भी बहकते चलते चलते

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ग़म-ए-हयात ने आवारा कर दिया वर्ना
थी आरज़ू कि तिरे दर पे सुब्ह ओ शाम करें

मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर
लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया

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रहते थे कभी जिन के दिल में हम जान से भी प्यारों की तरह
बैठे हैं उन्हीं के कूचे में हम आज गुनहगारों की तरह

तिरे सिवा भी कहीं थी पनाह भूल गए
निकल के हम तिरी महफ़िल से राह भूल गए

imageAkhtar Shirani Poetry: अख्तर शिरानी के खजाने से 8 सुंदर शेर

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