दिल को सुकून रूह को आराम आ गया
मौत आ गई कि दोस्त का पैग़ाम आ गया
सुब्ह तक हिज्र में क्या जानिए क्या होता है
शाम ही से मिरे क़ाबू में नहीं दिल मेरा
निगाहों का मरकज़ बना जा रहा हूं
मोहब्बत के हाथों लुटा जा रहा हूं
नज़र मिला के मिरे पास आ के लूट लिया
नज़र हटी थी कि फिर मुस्कुरा के लूट लिया
ब-ज़ाहिर कुछ नहीं कहते मगर इरशाद होता है
हम उस के हैं जो हम पर हर तरह बर्बाद होता है
कुछ खटकता तो है पहलू में मिरे रह रह कर
अब ख़ुदा जाने तिरी याद है या दिल मेरा
इश्क़ की चोट दिखाने में कहीं आती है
कुछ इशारे थे कि जो लफ़्ज़-ओ-बयां तक पहुंचे
जिस दिल को तुम ने लुत्फ़ से अपना बना लिया
उस दिल में इक छुपा हुआ नश्तर ज़रूर था
दाग़ दुनिया ने दिए ज़ख़्म ज़माने से मिले
हम को तोहफ़े ये तुम्हें दोस्त बनाने से मिले
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