जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता,
मुझे पामाल रस्तों का सफ़र अच्छा नहीं लगता
तब हम दोनों वक़्त चुरा कर लाते थे,
अब मिलते हैं जब भी फ़ुर्सत होती है
डर हम को भी लगता है रस्ते के सन्नाटे से,
लेकिन एक सफ़र पर ऐ दिल अब जाना तो होगा
तुम ये कहते हो कि मैं ग़ैर हूँ फिर भी शायद,
निकल आए कोई पहचान ज़रा देख तो लो
मैं पा सका न कभी इस ख़लिश से छुटकारा,
वो मुझ से जीत भी सकता था जाने क्यूँ हारा
इक मोहब्बत की ये तस्वीर है दो रंगों में,
शौक़ सब मेरा है और सारी हया उस की है
खुला है दर प तिरा इंतिज़ार जाता रहा,
ख़ुलूस तो है मगर ए’तिबार जाता रहा
उस दरीचे में भी अब कोई नहीं और हम भी,
सर झुकाए हुए चुप-चाप गुज़र जाते हैं
छत की कड़ियों से उतरते हैं मिरे ख़्वाब मगर,
मेरी दीवारों से टकरा के बिखर जाते हैं