चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है,
हम को अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है
नहीं आती तो याद उन की महीनों तक नहीं आती,
मगर जब याद आते हैं तो अक्सर याद आते हैं
चोरी चोरी हम से तुम आ कर मिले थे जिस जगह,
मुद्दतें गुज़रीं पर अब तक वो ठिकाना याद है
वफ़ा तुझ से ऐ बेवफ़ा चाहता हूँ,
मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ
तेरी महफ़िल से उठाता ग़ैर मुझ को क्या मजाल,
देखता था मैं कि तू ने भी इशारा कर दिया
इक़रार है कि दिल से तुम्हें चाहते हैं हम,
कुछ इस गुनाह की भी सज़ा है तुम्हारे पास
ऐसे बिगड़े कि फिर जफ़ा भी न की,
दुश्मनी का भी हक़ अदा न हुआ
वाक़िफ़ हैं ख़ूब आप के तर्ज़-ए-जफ़ा से हम,
इज़हार-ए-इल्तिफ़ात की ज़हमत न कीजिए
छुप नहीं सकती छुपाने से मोहब्बत की नज़र,
पड़ ही जाती है रुख़-ए-यार पे हसरत की नज़र